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मन को स्थिर किए बगैर भगवान महावीर की वाणी श्रवण का महत्व नहीं: साध्वीश्री डाॅकुमदलताजी

मन को स्थिर किए बगैर भगवान महावीर की वाणी श्रवण का महत्व नहीं: साध्वीश्री डाॅकुमदलताजी

गुरु दिवाकर दरबार में दिखा समवशरण सा नजारा..

बेंगलूरु। यहां वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में रविवार को विश्वविख्यात अनुष्ठान आराधिका, ज्योतिष चंद्रिका एवं शासनसिंहनी साध्वीश्री डाॅकुमदलताजी की पावन निश्रा में भिक्षुदया दिवस मनाया गया। इस अवसर पर साध्वीश्री डाॅ.पद्कीर्तिजी के निर्देशन में युवा समिति के संयोजन में करीब 350 से अधिक श्रावक-श्राविकाओं ने एक दिन के लिए संयम अंगीकार कर साधुजीवन अपनाकर जीया।
इनमें कम से कम 7 वर्षीय बच्चे, युवक-युवतियां, महिलाएं तथा बुजुर्गों में अधिकतम 71 वर्षीय श्रावक शामिल हुए। गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा में डाॅ.कुमुदलताजी ने कहा कि संयम पथ पर बढ़ना आसान नहीं है तो कठिन भी नहीं है। उन्होंने कहा कि इस अनुभव को जीवन में प्राप्त करने वाला मोक्षमार्ग की ओर बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा कि सांसारिक जीवन में रहते हुए सभी प्रकार के भौतिक सुखों, पारिवारिक तथा अन्य प्रकार की मोहमाया से इतर अर्थात आसक्तभाव को छोड़कर अनासक्त होना श्रद्धालु की आत्मा व उसके जीवन को पवित्र, शुद्ध और स्वच्छ बनाता है। कुमुदलताजी ने एक दिवसीय संयम अंगीकार करने वाले सभी श्रद्धालुओं को पूर्ण आस्था, भक्ति एवं श्रद्धा से इस नियम को आनंद से पालने का प्रेरणादायी आशीर्वाद भी दिया।
इससे पूर्व साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी ने कहा कि मन को स्थिर किए बगैर भगवान महावीर की वाणी अथवा नियम-सूत्रों को समझा नहीं जा सकता है। उन्होंने ‘सेवा विषयक’ अपने प्रवचन में कहा कि व्यक्ति के जीवन की नींव उसके द्वारा की जाने वाली सेवा ही होती है। इस धरा के भार को चुकाने के लिए पृथ्वी पर किसी भी प्राणी की सेवा करना अमूल्य संपदा के समान है। साध्वीश्री ने कहा कि सेवा करने से तीर्थंकर नामकर्म गोत्र का बंध होता है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने किसी ने किसी रुप में सेवा करके अपना सर्वस्व दिया है। महाप्रज्ञाजी ने कहा कि जैनधर्म ही नहीं प्रत्येक धर्म में सेवा को परम धर्म बताया गया है। सेवा का दीपक जलाकर प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन को रोशन करने की सीख देते हुए साध्वीश्री ने मायावी संसार में वर्तमान में इंसानी सोच की भी विस्तार से व्याख्या की। साथ ही श्रवणकुमार के माता-पिता की सेवा के प्रसंग को उल्लेखित किया।
धर्म और संस्कृति को गौरव बताते हुए उन्होंने कहा कि शरीर, संस्कृति व धर्म की रक्षा आज के दौर में महत्ती आवश्यक है। समिति के महामंत्री चेतन दरड़ा ने बताया कि इस अवसर पर साध्वीश्री राजकीर्तिजी के निर्देशन में संस्कारशाला के बच्चों ने पयुर्षण पर्व विषयक नृत्य-नाटिका की प्रस्तुति दी। चेन्नई से एक दिवसीय कार्यक्रम के तहत साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी के दर्शन-वंदन के लिए आई 61 वर्षीय श्राविका शांतिदेवी सिसोदिया आठ दिनों से बेंगलूरु में ही हैं। उन्होंने रविवार को गुरु दिवाकर दरबार में भिक्षुदया के कार्यक्रम को समवशरण की संज्ञा दी। पहली बार ऐसा नजारा देखने वाली शांतिदेवी ने कहा कि साधु-संत-साध्वियांे के प्रभाव को खूब देखा है, मगर कुमुदलताजी जैसा नहीं देखा।
आत्मा को आनंद देने वाला उनका अनुष्ठान, मीठासभरे व्याख्यान के लिए उनके पास शब्द नहीं है। बकौल शांतिदेवी संतों में शेरे राजस्थान की उपमा लोकमान्य संतश्री रुपमुनिजी को मिली हुई है, साध्वियों में हमारी साध्वीश्री डाॅ.कुमदलताजी को मैं तो शेरनी मानती हूं। धर्मसभा में मशहूर गायक एवं संगीतकार हितेश मेहता-ऋषभ मेहता व मुंबई के सिने-टीवी कलाकारों ने भी शिरकत कर साध्वीवृंद का आशीर्वाद लिया। चेतन दरड़ा ने बताया कि चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, आंबूर व उदयपुर सहित शहर के विभिन्न उपनगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।
आगंतुक अतिथियों का समिति के पदाधिकारियों द्वारा सत्कार किया गया। समिति के सहमंत्री अशोक रांका ने बताया कि ज्योतिषाचार्य कांतिलाल जैन व एक दिवस पूर्व डाक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त करने वाले डाॅ.गौतमचंद धारीवाल का भी समिति द्वारा अभिनंदन किया गया। भिक्षुदया आयोजन के प्रभारी, युवा समिति के अध्यक्ष राजेश गोलेच्छा ने अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि जयजिनंेद्र प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। धर्मसभा का संचालन चेतन दरड़ा ने किया। सभी का आभार धर्मेंद्र मरलेचा ने जताया।

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