चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि यदि मनुष्य का भाग्य अच्छा होता है तो प्रतिकूल स्थितियां भी अनुकूल बन जाती हैं और भाग्य अच्छा नहीं हुआ तो अनुकूल स्थितियां भी प्रतिकूल बन जाती हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने अच्छे भाग्य का निर्माण करना चाहिए। सबके प्रति मन में भलाई की भावना, वाणी में सत्यता व मधुरता और विचारों में स्वच्छता, आचार में नैतिकता, शरीर से सहयोग, सेवा-सुश्रुषा करने से हमारे अच्छे भाग्य का निर्माण होता है।
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता खुद होता है। औषध, मंत्र, नक्षत्र, गृह देवता ये चारों अनुकूल होते हैं तब हमारा भाग्य भी अनुकूल होता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान को श्रेष्ठ माना गया है। जैन दर्शन में भी मोक्ष के चार भाग बताए गए हंै- दान, शील, तप और भावना।
सच्चा धनवान वही होता है जो दोनों हाथों से कमाता भी है और दोनों हाथो से ही गरीबों व असहायों को दान भी देता है। लोभी अपने धन का संग्रह करता है। ऐसे लोभियों के धन का सुख अंतत: दूसरे लोग ही भोगते हैं।