चेन्नई. मईलापुर स्थित जैन स्थानक में विराजित कपिल मुनि के सान्निध्य में रविवार को 21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव के तहत भगवान महावीर की अंतिम देशना श्री उत्तराध्ययन सूत्र पर उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा भयभीत वही होता है जिसका कोई सहारा नहीं होता। इस संसार में धर्म से बढ़कर कोई सहारा नहीं होता। जो आकर्षित करे मगर स्थिर नहीं रहे उसी का नाम राग है। जिनवाणी श्रवण का संयोग पुण्य की प्रबलता से ही मिलता है। इस योग से हमें जीवन में पात्रता विकसित करनी चाहिए। सफल जीवन की कसौटी है पात्रता और योग्यता का विकास। किसी भी चीज की प्राप्ति से पूर्व व्यक्ति को अपनी योग्यता का निरीक्षण करना चाहिए।
व्यक्ति के जीवन में कर्मो के आक्रमण का कारण है उसके भीतर आस्था का दीप बुझ जाना। जिसने देव गुरु धर्म का सहारा लिया है उसके जीवन से सारे भय विदा हो जाते हैं। प्रभु महावीर प्राणिमात्र के दु:ख, पीड़ा और आकुलता को जानने वाले थे। सभी के दु:ख निवारण की पवित्र भावना से ही यह जिनवाणी का निर्झर प्रवाहित हुआ। जिसका संकलन ही उत्तराध्ययन सूत्र है। इसका प्रत्येक अध्ययन और विषय जीवन के धरातल से जुड़ा होने के कारण धरती के हर मानव को इस वाणी का श्रवण करके हृदयंगम करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। संचालन संघ मंत्री विमलचंद खाबिया ने किया।