चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम मेमोरियल सेन्टर में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा’ ने गुरुवार को आत्मा के तीन प्रकार बताए बहिर्आत्मा, अन्तरआत्मा, और परमात्मा। ऐसे लोग जो मात्र भौतिक रिश्तों और संसार में रचा-बसा रहता है, शरीर ही सबकुछ मानता है, परमात्मा में विश्वास नहीं करता, वह बहिर्आत्मा है।
अन्तरआत्मा उन्हें कहा गया है, जो आत्मा और शरीर में भेद और मोक्ष को अपनी मंजिल समझते हैं, म्यान और तलवार तथा नारियल और उसके खोल की भांति शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता को जानते हैं। परमात्मा उन्हें कहा गया है जिनके समस्त कर्मों की निर्जरा हो चुकी है और उनके लिए अब करणीय कुछ भी नहीं बचा है।
भगवान महावीर ने कहा है कि सब आत्मा एक ही है। इसका कोई स्थाई नाम और स्वरूप नहीं होता। आत्मा जब परमात्मा बन जाती है तो वेद, अवेद का भेद समाप्त हो जाता है। यह न वृद्ध और न जवान है, मात्र शाश्वत है। हमें अपनी आत्मा का ध्यान करना चाहिए। पूर्व भव के अच्छे कर्मों से हमें इस आर्यक्षेत्र में मनुष्य जन्म और जिनवाणी सुनने का मौका मिला है। एक बार चूक गए तो पुन: ८४ में जाना पड़ेगा। हम त्यागने, समझने और प्राप्त करने योग्य को जान जाएं तो जीवन उत्कृष्ट बन जाए।
साध्वी हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने कहा कि संत आएं या न आएं लेकिन संतों के आगमन की भावना मन में भाकर आप अपने कर्मों की निर्जरा कर सकते हैं। संत महापुरुषों को बहोराने वाले से ज्यादा उसमें देनेवाले के भावों का अधिक महत्व है। श्रीकृष्ण द्वारा भाववश विदुरानी द्वारा दिए गए केले के छिलके भी खाने, चंदनबाला द्वारा प्रभु महावीर को बासी उड़ददाल के बाकले स्वीकारने और जीरन सेठ द्वारा भगवान को मात्र तपस्या का पारणा कराने की भावना के अनेकों उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
साध्वी ने कहा कि एक भिक्षु को हाथ जोडक़र दिया जाता है जबकि भिखारी हाथ जोडक़र लेता है। दोनों को ही हम देते हैं लेकिन भिक्षु को दिया दान हमारी कर्म निर्जरा करता है, जबकि भिखारी को दिया दान शुभ का बंध करता है।
चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार मंत्री हीराचंद पींचा ने बताया कि धर्मसभा में प्रश्नमंच के बाद अनेकों तपस्वीयों ने पच्चखान लिए।