क्रमांक – 35
. *तत्त्व – दर्शन*
*🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*
*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*
*🔅 पाप तत्त्व*
*पाप के अठारह प्रकार हैं-*
*09. लोभ : पदार्थों की लालसा या लालच प्रवृत्ति लोभ पाप है।*
*10. राग : प्रियता और रागात्मक प्रवृत्ति राग पाप है। राग व्यक्त और अव्यक्त दोनों प्रकार का है। रागात्मक प्रवृत्ति में माया और लोभ का अस्तित्व रहता है। आसक्ति रूप जीव का परिणाम राग है।*
*11. द्वेष : अप्रियता या द्वेषात्मक प्रवृत्ति द्वेष पाप है। द्वेष व्यक्त और अव्यक्त दोनों प्रकार का है। द्वेषात्मक प्रवृत्ति में क्रोध और मान का अस्तित्व रहता है। अप्रीति रूप जीव का परिणाम द्वेष है।*
*12. कलह : लड़ाई-झगड़ा करना कलह पाप है। हाथापाई, अपशब्द प्रयोग आदि कलहकारी प्रवृत्ति है।*
*13. अभ्याख्यान : मिथ्या दोषारोपण करने वाली प्रवृत्ति अभ्याख्यान पाप है। किसी पर झूठा कलंक लगाना अभ्याख्यान है।*
*14. पैशुन्य : चुगली करने की प्रवृत्ति पैशुन्य पाप है। पीठ पीछे किसी के दोष को प्रकट करना पैशुन्य है।*
*15. पर-परिवाद : पर निंदामूलक प्रवृत्ति पर-परिवाद पाप है। दूसरों की निंदा करना पर-परिवाद है। चुगली पीठ पीछे होती है और निंदा सामने भी हो सकती है।*
*16. रति-अरति : असंयम में रुचि होना और संयम में अरुचि होना रति-अरति पाप है।*
*क्रमशः ………..*
*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*
विकास जैन।