Share This Post

ज्ञान वाणी

परिग्रह का परिमाण करना चाहिये: वीरेन्द्र मुनि

परिग्रह का परिमाण करना चाहिये: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने पांचवें व्रत की व्याख्या करते हुवे कहा कि परिग्रह का परिमाण करना चाहिये।

आपको 12 व्रतों का पालन करने में कोई भी अड़चन नहीं आती है क्योंकि आप जितना चाहो उतना व्रतों में छूट ( आगार ) रख सकते हो। अगर हम व्रत ग्रहण करते हैं तो जितना आगार रखेंगे उतना ही आश्रव रहेगा बाकी का आश्रव रुक जायेगा बांध ( डेम ) में से जितना चैनल से पानी छोड़ेंगे उतना ही बाहर होगा वैसे ही हम पच्चखान करते हैं। तो जितना छूट रखी है उतना ही कर्म बंधन होगा बाकी के कर्मों के बंधन से छुटकारा मिल जायेगा

अतः खेत मकान दुकान गोडाउन व सोना चांदी रुपया हीरे मोती जवाहरात आदि तथा सचित परिग्रह में पशु दास दासी हाथी घोड़ा गाय बैल भैंस अभी आप जितने चाहो उतने रख सकते हैं। अगर पाप कर्म से बचना है तो श्रावक को 12 व्रतों में एक व्रत तो कम से कम ग्रहण कर लेना चाहिये। तभी हम जैन कहलाने के व श्रावक कहलाने के योग्य होंगे परिग्रह की मर्यादा करेंगे तो दान देने की इच्छा भी होगी और इच्छा होने पर दान देने के भाव जागृत होंगे।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar