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परमात्मा का दूसरा चौमासा नालंदा मे होता है

परमात्मा का दूसरा चौमासा नालंदा मे होता है

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज गुरूवार तारीख 20 अक्तूबर 2022 को प.पू. सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में मृदुभाषी श्री साधना जी मसा ने उत्तराध्ययन सूत्र फरमाया! चण्ड कौशिक को अमृत कौशिक बनाने के बाद गंगा नदी को पार करने नौका में सवार हो जाते हैं! उस नौका में बैठे एक बाह्मण को कोई संकट आने की आशंका होता है लेकिन परमात्मा को देखते ही वह आश्वस्त हो जाता है! एक सिंह जिसे त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में मारा था वह देव बन जाता है और परमात्मा को पहचान कर बदले की भावना से नौका को डावाडोल करते हुए बड़े-बड़े वृक्ष को उखाड़ देता है! नौका में बैठा ब्राह्मण परमात्मा से विनती करते हैं कि आप हमें अपनी शरण में ले ले और हमारी रक्षा करें तब कंबल और संबल नामक दो देव आकर इस उपसर्ग को दूर करते है ! परमात्मा का दूसरा चौमासा नालंदा मे होता है और उनके जीवन में गौशालक का प्रवेश होता है!

गौशालक और उसके परिवार का कोई स्थाई कारोबार नहीं होता है! वे हमेशा दरबार में या लोगों के बीच चित्र बनाकर कविता सुना कर अपनी जीविका चलाते हैं! लोगों के ऐश्वर्य को देखकर ईर्ष्या मग्न गौशालक अपने पिता के साथ राज दरबार में व्यंग्य कविता के ताने मारता है और राजा क्रोधित होकर उन्हें पीट कर बाहर निकाल देते हैं! अपने बेटे के व्यवहार से रुष्ट पिता गौशालक को घर से निकाल देते हैं! अपना पेट भरने के लिए गोशालक अपना हुनर लेकर निकल पड़ता है!

परमात्मा के शूल पानी यक्ष और चण्ड कौशिक के जीवन सुधार के किस्से से प्रभावित स्वार्थी गौशालक उनके नालन्दा के वर्षावास में पहुंच जाता है! ध्यानस्थ परमात्मा के तेज को देखकर विस्मित होकर तरह-तरह के सवाल करता है! महीने भर के ध्यान के पश्चात प्रभु पारणा करते हैं और उस समय सोना बरसते देखकर अपना जीवन स्थाई रूप से उनके साथ रहने का बना लेता है! पारणा करने के तुरंत पश्चात प्रभु भक्ति में लीन और चौमासा पूर्ण होते ही विहार कर देते हैं! प्रभू के नियमों से अनभिज्ञ गौशालक उनसे बिछुड जाता है और बडी कठिनाई से उन्हें ढूंढ भी लेता है!

गौशालक परमात्मा का साथ पाने के लिए सिर मुंडवा कर उनके जैसा ही बन जाता है! यद्यपि प्रभु ने उसको अपना शिष्य नहीं माना था लेकिन उसके मन की व्यथा को देखकर आंखों के इशारे स्वीकृति दे देते हैं उनके साथ रहने के लिए! गौशालक को भिक्षा में वही मिलता है जिसकी भविष्यवाणी प्रभु करते हैं! गौशालक के मन में तेजो लेश्या विद्या सीखने की तीव्र इच्छा के तहत प्रभु के निर्देशानुसार 6 महीने की कठिन तपस्या के बाद गौशालक उस विद्या को प्राप्त कर लेता है! विद्या प्राप्त करने के बाद गांव के लोगों को बुलाकर तेजोलेश्या के प्रभाव से अपना प्रवचन सुना कर उन्हें अपने वश में करने की कोशिश करता है!

परमात्मा के तीर्थ स्थापना के पश्चात 16वें वर्ष गौतम स्वामी एवं अनेक शिष्यों के साथ उसी गांव में परमात्मा का पदार्पण होता है! गौशालक परमात्मा को उनके सभी शिष्यों के सामने सावधान (warning) करता है कि उसके बारे में अनावश्यक टिप्पणी ना करेंं !प्रभु किसी भी लब्धि का प्रयोग नहीं करते हैं, लेकिन घमण्डी गौशालक परमात्मा पर तेजोलेश्या विध्या से प्रहार करता है! तजोलेश्या प्रभु की परिक्रमा करने के बाद वापस गौशालक में ही प्रविष्ट हो जाती है और भगवान की भविष्यवाणी के अनुसार 7 दिन में गौशालक अपनी आलोचना करते हुए मरणोपरांत देवलोक में पहुंच जाता हैं!

क्रमशः

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