चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, दूसरे महादेव और तीसरे रामदेव, इन तीन महापुरुषों के नाम में ही ‘देव’शब्द आता है। जब-जब धर्म की हानि होती है, महापुरुषों का अवतरण भारतभूमि पर होता है। नारी सोने की तरह है, तो पुरुष लोहे की तरह है। लोहा खुले स्थान में पड़ा रहे तो कोई खतरा नहीं किंतु सोना खुले में रहे एवं उस पर पर्दा न हो, तो लुटेरे लूट ले जाते हैं और हम अपना सिर कूटकर, फूट-फूट कर रोने लग जाते हैं।
स्त्री, धन और भोजन इन तीनों को पर्दे में ही रखना चाहिए जिससे सुरक्षा बनी रहे। जिस प्रकार दही की तपेली से ढक्कन हटते ही उसे कुत्ते, बिल्ली, चूहे, कौए खराब कर देते हैं, वैसे ही नारी यदि अपने बदन का प्रदर्शन करती रहे, तो वासना के भेडि़ए उसे नष्ट करने में देर नहीं लगाते।
जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवताओं का निवास होता है। नारी हमेशा नर से भारी रही है इसलिए पुरुष सदा नारी का आभारी रहा है। जीवन में यदि सुखी रहना हो तो अपनी पत्नी को खुश रखें। हम तिजोरी में रहने वाली लक्ष्मी की पूजा तो करते हैं, लेकिन गृहलक्ष्मी का सम्मान करना भूल जाते हैं। तिजोरी की लक्ष्मी उसी के घर पर टिकती है जो गृहलक्ष्मी का ्रसम्मान बढ़ाता है।
सकारात्मक सोच के बिना जिंदगी अधूरी रहती है। हर विचार एक बीज की तरह होता है। हम जैसा सोचते हैं मस्तिष्क रूपी धरती पर जैसा विचार रूपी बीज बोते हैं वैसे ही बन जाते हैं। हमारा जैसा विचार होगा वैसा ही आचार अर्थात् आचरण होगा। हमारी सोच ही हमारा भविष्य तय करती है। जहां राम है, वहीं आराम है, राम में जब विश्राम होता है, तभी वास्तविक आराम मिलता है।