एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा इस स्वार्थमय संसार में इन्सान पर सभी आपत्तियों एवं घोर कष्ट के बादल मंडराते हैं और उसके लिए सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। ऐसे समय में अपने सगे-संबंधी भी शत्रु बन जाते हैं।
उसके प्रति सहयोग की भावना नष्ट हो जाती है। संसार में सुख साथी तो लाखों हैं लेकिन दुख का साथी कोई नहीं। दुख में यदि कोई साथी है तो वह है धर्म। जो हमेशा जीव व इन्सान के साथ रहता है। चलते हुए को गिराने वाले तो बहुत हैं लेकिन गिरे हुए को हाथ पकडक़र उठाने वाले बिरले ही होते हैं और वही पुरुष इतिहास बनते हैं।
धन के अहंकार में इन्सान अंधा हो जाता है वह किसी के दुख, पीड़ा व वेदना को समझने की क्षमता खो देता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा जो शिष्य स्वच्छंदता त्याग कर अपने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य करता है और संयम का आराधक बनकर एवं गुरु को अपना मार्गदर्शक समझकर उनकी आज्ञा का पालन करता है वह शीघ्र ही इस संसार सागर से किनारा पाकर मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है।
आज्ञा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है एवं इसी में मोक्ष है। व्यक्ति को इस सोच कि युवावस्था नहीं वृद्धावस्था में धर्माराधना करूंगा को त्याग देना चाहिए। जो बुढ़ापे की प्रतीक्षा न कर युवावस्था से ही धर्माराधना कर लेता है उसे अंतिम समय में रोने एवं पश्चाताप करने की जरूरत नहीं पड़ती। व्यक्ति के लिए प्रमाद त्यागकर जागरूक होना परमावश्यक है।