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दरिद्र दो प्रकार के होते हैं: मुनि तीर्थ हंसविजय

दरिद्र दो प्रकार के होते हैं: मुनि तीर्थ हंसविजय

किलपाॅक में विराजित मुनि तीर्थ हंसविजय महाराज ने प्रवचन में कहा जब तक स्वर्गस्थ नहीं हुए तब तक सर्वस्थ हो गए तो आप जंग जीत जाओगे। उन्होंने बताया कि दरिद्र दो प्रकार के होते हैं द्रव्य दरिद्र जिसके पास धन नहीं हैं और भाव दरिद्र, जिसके पास धर्म नहीं है। 

आप श्रीमंत हो कि नहीं, पांच पी से गिने जाओगे पैसा, परिवार, प्रेस्टीज, पर्सनलिटी और पावर। उन्होंने कहा धर्म श्रीमंत बनने के पांच लक्षण है औदार्यता, दाक्षिण्य, पापों के प्रति जुगुप्सा, निर्मल बोध और लोकप्रियता। हमारा मन कृपणता का त्याग और दान आदि शुभ भावों से खिलेगा।

खुद का स्वार्थ का चिंतन नेरौ ट्रेक के समान संकीर्ण विचार है। इससे धर्म की सिद्धि नहीं हो सकती। इससे हम लोकप्रिय नहीं बन सकते। हमारी बुद्धि पर मिट्टी की परत पड़ी है जिससे बुद्धि धीरे काम करती है। यह संकीर्ण बुद्धि का द्योतक है। मीटरगेज ट्रेक यानी जो मेरा सोचूंगा साथ में परिवार का भी सोचूंगा। जब तक ब्रोडगेज ट्रेक यानी सवी जीव करु शासन की भावना नहीं होगी, आप तीर्थंकर गौत्र का बंधन नहीं कर सकते। यह होगा तब ही आप विश्व दृष्टि के लिए उपलब्ध हैं।

दीक्षा के बाद आत्मलक्ष्य की साधना और मोक्ष में जाने का मार्ग प्रशस्त होता है, इसलिए आत्मा का कल्याण करो। यह सोच तीर्थंकर पद के लिए प्रेरित करेगी। तीर्थंकर की आत्मा नरक में होगी तब भी वह आत्मकल्याण का सोचेगी। औदार्यता व दाक्षिण्य प्रकृति से श्रीमंत बनाते हैं। उन्होंने कहा तिथि के पांच दिन लीलोतरी का त्याग करते हैं उसी तरह कषायों का त्याग करने की सोच होनी चाहिये।

उन्होंने कहा व्यापक मानसिकता की उदारता तीन योग से आती है मनोयोग, वचनयोग और कायायोग।  मनुष्य दूसरों के उपकार लिए बिना जी नहीं सकता। आपको चिंतन करना चाहिए कि कितने लोगों का उपकार आप ले रहे हैं। यदि दूसरों के उपकार को नहीं मानेंगे तो मन की उदारता नहीं ला पाएंगे।
इसलिए उपकारों की दिल से अनुमोदना करो। सुरक्षा के लिए चौकीदार का उपकार मानकर उसकी अनुमोदना करो। मंदिर के पुजारी को जिनभक्त नाम से संबोधित कर अनुमोदना करो। मन की उदारता का बोध हमेशा जागृत रहना चाहिए। पांचों गुण हमारे जीवन में आए और हम श्रीमंत बनें, यह लक्ष्य होना चाहिए।

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