कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): मैसूर रोड के कुम्बलगोडु में स्थित आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, प्रभावी प्रवचनकार आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख ने निरंतर प्रवाहित हो रही ज्ञानगंगा श्रद्धालुओं को परम तृप्ति प्रदान कर रही है।
यह तृप्ति लोगों आकर्षित कर रही है और सहज ही आचार्यश्री की सन्निधि में ले आती है। ‘महाश्रमण समवसरण’ में पहुंचने वाला हर एक व्यक्ति आचार्यश्री महाश्रमणजी की वाणी का श्रवण कर अपने जीवन को नई दिशा दे रहे हैं।
शनिवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर के एक शिष्य द्वारा एक प्रश्न पूछा गया कि पहले मुर्गी आई या पहले अण्डा? तो भगवान महावीर ने उसे प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दोनों ही शाश्वत हैं और दोनों पहले से चले आ रहे हैं, प्रथम और पूर्व वाली बात नहीं है।
उसी प्रकार ‘सम्बोधि’ में एक प्रश्न है कि पहले तृष्णा आती है या पहले मोह। भगवान महावीर ने इसका समाधान प्रदान करते हुए कहा कि दोनों ही एक-दूसरे से प्रेरित हैं। जब व्यक्ति के मोहनीय कर्म का उदय होता है तो तृष्णा पैदा होती है और जब तृष्णा पैदा होती है तो व्यक्ति के भीतर उसके प्रति मोह उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति के भीतर जब किसी पदार्थ को प्राप्त करने की तृष्णा बढ़ने लगती है और वह उस व्यक्ति को प्राप्त होती है तो व्यक्ति का उसके मोह भाव भी प्रगाढ़ होने लगता है।
इस प्रकार तृष्णा से मोह और मोह से तृष्णा पैदा होती है। आदमी पहले गुटखा खाता है और फिर गुटखा उसे खाने लगता है। कोई आदमी शराब पीता है और फिर शराब उसे पीने लग जाती है। आदमी सोचता है समय बीत गया, समय नहीं उसके साथ आदमी स्वयं बीत जाता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में तपस्या आदि के माध्यम से मोह और तृष्णा को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को तृष्णा और मोह को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी सपक श्रेणी से सीधे मोक्ष की ओर गति करता है। गुणस्थानों के विषय में आचार्यश्री ने विस्तार से बातते हुए कहा कि मोक्ष की दो रास्ते जाते हैं, उसमें सपक श्रेणी का रास्ता बहुत अच्छा है।
उस पर गति करने वाले को कभी लौटना नहीं पड़ता और वह मोक्ष की ओर गति कर सकता है। आचार्यश्री ने ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ पुस्तक के माध्यम से आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जन्म व उसके साथ हुई कुछ घटनाओं आदि का वर्णन करते हुए लोगांे को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पुरुषार्थ के माध्यम से आदमी कुछ भी संभव किया जा सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात् आज भी नित्य की भांति आचार्यश्री के समक्ष अनेकानेक महिला, पुरुष आदि तपस्वियों ने उपस्थित होकर अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। तपस्वियों की संख्या भी निरंतर बढ़ती जा रही है।
ऐसा महसूस हो रहा है कि एक महातपस्वी की सन्निधि प्राप्त कर श्रद्धालुओं के भीतर तपस्या की ऐसी प्रेरणा जागृत हो रही है जो उनकी तपस्या की निष्ठा को पुष्ट बना रही है। यहीं कारण है कि दिन-प्रतिदिन तपस्याओं की संख्या बढ़ती जा रही है।