तेरापंथ का इतिहास* धर्म क्रांति का इतिहास है । उस क्रांति के पुरोधा थे आचार्य भिक्षु । 260 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने राजस्थान के केलवा में गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान चंद्रप्रभु के मंदिर में ( अंधेरी ओरी ) नई दीक्षा ग्रहण करके नये धर्म संघ की स्थापना की । तेरापंथ स्थापना की पुष्ठ भूमि त्रिपदी आधारित रही है ।
तेरा पंथ की त्रिपदी है आचार क्रांति, विचार क्रांति और अनुशासन क्रांति इनके आधार पर तेरापंथ धर्म संघ की स्थापना की गई । धर्म संघ ने चिंहुमुखी विकास किया है । उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि रमेश कुमार ने ट्रिप्लीकेन स्थित तेरापंथ भवन में 260 वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर व्यक्त किये ।
*“मुनि रमेश कुमार ने ” भिक्षु भूमि केलवा” का इतिहास भी इस अवसर पर विस्तार से बताया ।*
मुनि सुबोध कुमार ने कहा* आज हम तेरापंथ स्थापना दिवस और गुरु पूर्णिमा एक साथ मना रहे हैं मानो सोने में सुहागा जैसा है । आचार्य भिक्षु लोह पुरुष थे । उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व था जो कभी झुके नहीं, कभी रुके नहीं, जीवन पर्यन्त संघर्षों के सामण डटे रहे ।
आचार्य भिक्षु और गुरु पूर्णिमा की तुलना करते हुए आगे कहा – हजारों हजारों सूर्य चंद्रमा मिलकर भी इतनी रोशनी और शीतलता नहीं दे सकते जितनी रोशनी और शीतलता गुरु अकेले देते हैं । आचार्य भिक्षु सत्य के मार्ग पर चले उन्हें सत्य मार्ग से चलित करने को अनेक प्रयास किये गये, लेकिन वीर पुरुष आचार्य भिक्षु सत्य के मार्ग पर सदा डटे रहे ।
इससे पूर्व मुनि रमेश कुमार ने नमस्कार महामंत्रोच्चारण किया । स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल ने मंगलाचरण किया । मुनि सुबोध कुमार जी ने संयोजन किया । सामूहिक रूप से संघगान के संगान से कार्यक्रम संपन्न हुआ ।