चेन्नई. रविवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि परमात्मा कहते हैं कि मनुष्य मन में सोचता है कि मैं अपने प्रियजनों का पोषण ऐसा करूंगा, अमुक कार्य ऐसा करूंगा जैसा आज तक कोई नहीं कर पाया। वह इस तुच्छ अनुभूति में जीवन भर डूबा रहता है। इस अहंकार में कभी नकारात्मक तो कभी सकारात्मक बनता है। परमात्मा ने परम सत्य कहा है कि ऐसी भावना मन में रहती है तो व्यति यह कार्य अच्छी प्रकार करता है लेकिन किसी का ऐसा अच्छा पोषण करने या सुख देने के बदले में आपकी अपेक्षानुसार सुख मिले यह निश्चित नहीं है।
मनुष्य सोचता है कि मैं किसी का पोषण ऐसा करूंगा तो मुझे भी ऐसा ही मिलेगा। इसमें सच्चाई का अंश नहीं है। यदि इस अच्छे के बदले में अच्छो की भावना रख सकते हैं लेकिन ऐसा मिलेगा इसकी कोई संभावना नहीं है। इसी चक्कर में अपने प्रियजनों के लिए अधिकतम संग्रह करता रहता है और उसमें से जो बच जाता है उसे वह संभलकर रखता है, संचित करता है। यह पाप, दोष और सबसे बड़ी बीमारी का कारण है।
भगवान महावीर ने कहा है कि जो बचे हुए का संचय करता है उसी से विरोध और दु:ख बढ़ते हैं। जिंदगी बीत जाती है और आयुष्य पूर्ण हो जाता है। जो जाकर न आए वह जवानी है और जो आकर न जाए वह बढ़ापा है। एक बार शरीर में रोग हो जाए तो आपको कोई भी छुटकारा नहीं दिला पाता। जिस प्रियजन का अद्भुत पोषण करने के लिए अनेकों दु:ख उठाए वही आपका तिरस्कार कर देता है, संतति और प्रियजन भी शरण नहीं देते हैं।
श्रीपाल और मैनासुंदरी के प्रसंग में यही सत्य है। कोई किसी का पालन-पोषण कर सकता है और सुख दे सकता है लेकिन दु:ख मुक्त नहीं कर सकता, मौत से कोई नहीं बचा सकता। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जो व्यक्ति यह जान जाए उसकी मानसिकता बदल जाती है। यदि बोध हुआ है तो उसे जीवन में अनुकरण करें तो वह बोध या ज्ञान है, अन्यथा वह दिमाग पर बोझ है। आपके जीवन में परिवर्तन होना ही चािहए।
श्रेणिक चरित्र में बताया कि हम जैसा व्यवहार किसी से करते हैं उसे भी वैसा करने के लिए आमंत्रित करते हैं। अभयकुमार धर्म पर अपने हृदय से भरोसा करता है और इसी का फायदा उठाकर उसे पकडऩे के लिए चंद्रप्रद्युत एक गणिका को भेजता है जो धर्म का सहारा ले साध्वीवेष में छल से अभयकुमार को पकड़कर चंद्रप्रद्युत के पास लाती है। बंदी बने अभयकुमार से चंद्रप्रद्युत अपने नगर में बड़ी बड़ी समस्याओं का हल पूछता है और हर बार बदले में वर देने की बात कहकर मुकर जाता है। चौथी बार अभयकुमार उसे भरी सभा में धिक्कारता है और उसे वहां से पीटते हुए अपने राज्य में ले जाने की चुनौती देता है।
उपाध्याय प्रवर ने वर्तमान परिदृश्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि चिंतन करें कि हम अपने धर्म के लिए क्या कर रहे हैं और हमारे युवा किस ओर जा रहे हैं। हमारी संस्कृति को कुचलने के लिए अनेकों प्रयास हो रहे हैं जिनमें एलजीबी कानून, व्यभिचार को अपराध न मानने और सिंथेटिक मीट जैसे अनेकों दुष्चक्र चलाए जा रहे हैं, जिनका हमें प्रतिकार करना है और अपनी भावी पीढ़ी को बचाना है तो उसे धर्म से जोडऩा ही पड़ेगा।
तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि मनुष्य जन्म हीरे के समान है, इसे चिडिय़ों को उड़ाने जैसे तुच्छ कार्य में न गंवाएं। जो व्यक्ति प्रमाद में रहता है वह इसे खो देता है। मनुष्य गति सर्वश्रेष्ठ है, इसे ही मोक्ष में जाने का अधिकार है, इसे प्राप्त अवश्य करें। जिस जीव को यह अहसास हो जाए वह पापों से बचता है व एक क्षण का भी प्रमाद नहीं करता। जो धर्म को जानकर भी जीवन में उतारते नहीं, वे प्रमाद में जीते हैं। जब शरीर के प्राण दुर्बल हो जाएंगे, बीमारियां घेरेंगी और इन्द्रिया वश में नहीं रहेंगी तब चाहते हुए भी धर्म कार्य नहीं कर पाओगे और अंतिम समय कब आ जाए, कोई नहीं जानता। इसलिए समय रहते इस तन का सदुपयोग करें, धर्म पथ पर बढ़ जाएं।
2019 में बेंगलोर चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान की
बेंगलोर श्री संघ के 180 सदस्यों का दल ने उपाध्याय प्रवर श्री प्रवीणऋषिजी महाराज के दर्शन वन्दन करने और 2019 के चातुर्मास की उपस्थिति की विनती लेकर उपस्थित हुआ तथा सभी जनों ने विनती की। उपाध्याय प्रवर ने श्रद्धालुओं की विनती और भावना को ध्यान में रखते हुए अपनी स्वीकृति प्रदान की तो उपस्थित जन मैदिनी ने हर्ष से भाव-विभोर हो जय-जयकार की।
पूना, इन्दौर और अन्य शहरों से भी अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे। प्रात: नवकार तीर्थ कलश अनुष्ठान और स्थापना का कार्यक्रम व दोपहर अर्हम पुरुषाकार ध्यान साधना का 2 घंटे का कार्यक्रम संपन्न हुआ।