शुक्रवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई मे चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एव तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अवसर पर विशेष प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने उपस्थित जन मैदिनी को पर्युषण पर्व का सकल्प कराया।
पर्युषण पर्व की महिमा बताते हुए कहा कि प्रतिक्रमण करने का महत्व बताते हुए कहा कि राजा स ́प्रति द्वारा अपने पूर्व जन्म मे बिना जाने-समझे मा ̃ा अपनी भू१ शा ́त करने के लिए एक दिन से भी कम समय का साधु जीवन और आधी-अधूरी धर्म क्रिया की थी जिसके बाद उसका आयुष्य पूर्ण हो गया, जिसके फलस्वरूप वह राजा बना। इसलिए जो बिना जाने-समझे भी धर्मक्रिया करता है, उसका फल बहुत मिलता है।
हमे अपना इतिहास जानना चाहिए कि हमारे पूर्वज कैसे धर्म शि१र पर पह ́ुचे और उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। परमात्मा प्रभु कहते है कि जो सारे दु:१ो के मूल पापो को नष्ट करने का सामथ्र्य र१ता है, शाति, सफलता और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है उस धर्म की आराधना करे ́, उसकी शरण ग्रहण करे। धर्म कार्य करने से पहले उसकी पूर्व तैयारी कर ले ́गे तो तपस्या मे ́ दु:१ और व्याकुलता नही ́ होगी बल्कि आनन्द और शाति प्राप्त होगी।
परमात्मा ने धर्म क्रियाए तीन प्रकार की बताई है- मन से मनन, वचन से वाचन और काया से क्रिया करते हुए करे। धर्म क्रियाओ को केवल भावनाओ से नही बल्कि क्रिया के द्वारा करे । कुछ लोग ससार की क्रियाए तो प्रेक्टिकल करते है लेकिन धर्म की क्रियाए करते हुए सोचते है कि भावनाओ से काम चल जाएगा। ऐसा नही करे और अपने व्यवहारिक जीवन मे उन्हे अगीकार करे । आगम मे ́ तीर्थंकर भगवतो ने कहा है कि जैसा पाप किया है वैसा प्रायश्चित करे।
क्रियात्मक पाप का क्रियात्मक प्रायश्चित होना चाहिए। कुछ व्यक्ति मन न हो तो भी अपने वहारिक जीवन मे धर्म क्रियाओ का पालन कर लेते है, वे भी अपना पुण्य का बध कर लेते है। लेकिन बिना पूर्व तैयारी और प्रशिक्षण के क्रिया करना तो अप्रशिक्षित ड्राइवर को अपनी गाड सौप देना है। परमात्मा महावीर दीक्षा ग्रहण करने वालो को स्वय धर्मक्रियाओ को प्रैक्टिकल ञ्जरूाान देते है लेकिन आगम ञ्जरूाान के लिए स्थवित भगव तो के पास भेजते है ।
परमात्मा महावीर सबसे पहले सही आहार, चलना, बोलना, १ड ̧ रहना, सोना आदि धर्म क्रियाओ को प्रशिक्षण देते है। जिनका पालन कर व्यक्ति इस भव मे अनेक प्रकार के कष्ट, पाप और विराधनो से बच जाता है। ऐसी क्रियाए जिनसे दु:१ समाप्त हो जाए, स्वय की एनर्जी बेकार न हो और दूसरा कोई परेशान न हो उन्हे परमात्मा धर्म क्रियाए कहते है।
ससार मे दो प्रकार के जीव है एक तो वे जो श्रद्धावान है, दूसरे वे जिनमे श्रद्धा और आस्था नही है। यदि बिना आस्था वाले जीव भी परमात्मा के बताए आचार-विचार को बिना आस्था के भी करे तो वे सर्वोच्च स्वर्ग मे देव गति पा सकते है तो फिर यदि श्रद्धावान और परमात्मा पर आस्था र१ने वाले जीव यदि परमात्मा की बताई राह पर चले ́ तो उनका तो परम-पद प्राप्त होना निश्चित ही है। हम तो सौभाग्यशाली है कि हमे ́ तीर्थंकर परमात्मा का सानिध्य जन्म से ही मिला है। उनकी एनर्जी और
पुण्य से जुड ̧गे तो पाप और नकारात्मकता का स्पर्श ही नही होगा।
आनन्द श्रावक की धर्म पर दृढ ̧ता और स्वर्ग के देव द्वारा परीक्षा लेने के प्रसग से बताया कि धर्म क्रियाओ मे प्रशिक्षण से व्यवहारिक जीवन मे करने की जरूरत है, इनके लिए केवल इन्फोर्मेशन और मन की भावना होना ही पर्याप्त नही है। इसलिए इस पर्युषण पर्व के अनमोल समय का उपयोग करे ́ और धर्म को अपने व्यवहारिक जीवन मे उतारे।
इन्द्रभूति गौतम ने परमात्मा से पूछा कि ऐसा जीव जिसे धर्म करने का मौका ही न मिला हो और आयुष्य पूर्ण हो गया हो तो उसकी गति स्वर्ग या नरक कैसे निश्चित होगी। अर्हम गर्भ स ́स्कार ऐसा ही एक प्रशिक्षण शिविर है जिसमे माता-पिताओ को अपने गर्भस्थ शिशु के पाप कर्मों का क्षय करने और उसे पुण्यशाली बनाने के लिए धर्मक्रियाओ का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि गर्भ मे ही उसके पापो का क्षय हो जाए।
जिस प्रकार मूर्तिकार की सजगता से एक मूर्ति साकार होती है लकिन एक गलति से वह स्थाई रूप से १ ́डित हो जाती है उसी प्रकार बालक के जन्म से पहले माता-पिता की धर्मक्रियाओ का फल मिलता है लेकिन जन्म के बाद तो उसके स्वय के कर्मों का आर भ हो जाता है। तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा सगीत के साथ अ ́तगड ̧ श्रुतदेव आराधना कराई गई। दोपहर मे कल्पसू ̃ की आराधना, साय भाव-प्रतिक्रमण और जैन इतिहास के सुनहरे पृष्ठो से साक्षात्कार कराया गया।