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जीवन में विनय को ग्रहण करना चाहिए: सुधा कवर जी मसा

जीवन में विनय को ग्रहण करना चाहिए: सुधा कवर जी मसा

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज गुरूवार तारीख 13 अक्तूबर 2022 को प.पू. सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में मृदभाषी श्री साधना जी ने फरमाया कि उत्तराध्ययन के 36 सूत्र हैं और हम उस समवशरण प्रभू के उस द्वार पर खड़े हैं जिसका परकोठा चांदी का है! सर्प के काटने पर भी इस सूत्र की वाणी से मुक्ति मिलती है! हमें जीवन में विनय को ग्रहण करना है और समझना है कि हम समवशरण के पास खड़े हैं! सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया कि मरीचि को देवलोक तो मिला लेकिन अगले 11 भव तक उनको लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हुयी! सोलहवें भव मे राजा विश्वनंदी के यहां विश्वभूति नाम से लघु भ्राता के रूप में जन्म लिया !

राजा विश्व नंदी के पुत्र विशाख नन्दी थे, और लघु भ्राता विशाख भूति के पुत्र विश्व नंदी थे इस कारण सर्वगुण संपन्न और सर्व कला निपुण होने के बाद में भी परम्परा के अनुसार राजगद्दी विश्वभूती को नहीं मिलनी थे ! दोनों पुत्रों की शादियां होने के बाद एक संयोग हो गया था! राजा का एक बहुत सुंदर उद्यान था और विश्वभूति अपनी सभी रानियों के साथ वहां चले गए थे! संयोग से दूसरे ही दिन उनके बडे भाई विशाखा नंदी भी अपनी रानियों के साथ उसी उद्यान पर पहुंच गए और वहां के पहरेदारों ने उन्हें अन्दर जाने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि यह वहां का नियम था कि एक टाइम पर एक परिवार ही वहां रह सकता है!

क्रोधित विशाखनन्दी की दासी ने राजमाता से शिकायत की और महारानी ने कोपभवन जाकर राजा को मजबूर कर दिया कि कैसे भी विश्वभूति को उस उद्यान से बाहर निकाला जाये! राजा की असमंजसता का फायदा उठाते हुए मंत्री ने षड्यंत्र रचा और युद्ध की भेरी बजवा दी और इस शंखनाद को सुनते ही शूरवीर विश्वभूति रानियों को बताये बिना उद्यान से बाहर आ जाते हैं और मंत्री के बताए अनुसार उस जगह पहुंच जाते हैं जहां पर संभावित युद्ध होना था! सामने से जिस क्षेत्र से युद्ध निश्चित हुआ उस स्थान के वृद्ध मंत्री आते हैं और स्थिति को भांप कर अनुनय विनय करते हैं और समझाते हैं कि वे चिंतन करें कि जब युद्ध की भेरी बजी उन्हें सुनाई दी तब वे कहां थे..? हो सकता है उन्हें उद्यान से बाहर निकालने की साजिश हो अन्यथा यहां पर कोई युद्ध नहीं हो रहा है!

इधर जब रानियां विश्वभूति का इंतजार कर रहे थे तभी विशाखनंदी अपनी रानियों सहित वहां पर पहुंच जाते हैं और विश्वभूति की रानियां अपने आपको अपमानित समझ कर वहां से बाहर निकल जाती है! जैसे ही विश्वभूति राजमहल में पहुंचते है तब सभी रानियां सच को छुपा कर आग्रह पूर्वक विश्वभूति के साथ वापस उसी उद्यान पर पहुंच जाती है और सभी पहरेदार उन्हे नियमानुसार अन्दर जाने की अनुमति नही देते हैं! विश्वभूति को वृद्ध मंत्री बात याद आती हैं और षड्यंत्र को समझ जाते हैं! क्रोध में वे पास के एक पेड पर अपनी मुष्ठी से इतना जबरदस्त प्रहार करते हैं, जिसकी वजह से उस पेड़ के सभी फल नीचे गिर जाते हैं और सभी रानियां और बगीचे के अंदर विशाख नंदी तक कांप जाते हैं!

राजा, मंत्री, भाई यहां तक कि अपनी रानियों के व्यवहार से विरक्त विश्वनंदी घोडे से उतरकर सभी को छोड़कर दिशाहीन होकर चलने लगते हैं! मार्ग में संभूति मुनि से उनका सामना होता है उनके तमतमाए हुए चेहरे को देखकर मुनिवर उनका हाथ पकड़ कर “बंधु” कह कर पुकारते हैं और उनके सिर पर हाथ रखते हैं! इस अप्रत्याशित स्नेह और वात्सल्य को पाकर विश्वभूति रो पड़ते हैं और मृत्यु का विचार त्याग कर त्याग की मूर्ति संभूति मुनि के पास दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। समाचार प्राप्त होते ही राजा विश्व नंदी अपने दलबल सहित संभूति मुनि के पास आकर पूछते हैं कि आपने किस की आज्ञा से इन्हें दीक्षा दिलाई..?

विश्वभूति से पूछने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी इसलिए सभी ने अनुनय विनय से मनाने की कोशिश की और सभी की सारी कोशिशें बेकार गई! मूर्ख विशाख नंदी अब भी यही सोच रहा था कि सिर्फ उद्यान की घटना से विरक्त होकर उन्होंने दीक्षा ली है! संयम अंगीकार करने के बाद में भी विश्वभूती को विशाख नंदी का षड्यंत्र बार-बार सता रहा था जिसकी वजह से उनकी क्रिया में बाधा पड रही थी और वे संभूति मुनि से आज्ञा लेकर विचरण करते हुए मथुरा पहुंच जाते हैं! उग्र तपस्या की वजह से वे बहुत कमजोर हो गए थे और गोचरी के लिए बाहर निकले थे तब एक गाय की ठोकर से वे गिर पड़ते हैं!

संयोग से उस समय उनके बडे भाई विशाख नन्दी अपने परिवार सहित वहीं पर विद्यमान थे और गिरते हुए विश्वभूति मुनि को पहचानकर उसका उपहास करने लगते हैं! क्रोधित मुनिवर दोनों हाथों से गाय के सींग पकड़कर चारों तरफ फिराकर फ़ेंक देते हैं और इतना प्रचंड बल देखकर विश्वनंदी डर जाता है!अपनी गलती का एहसास होते ही मुनिवर को अपने भाई पर ज्यादा क्रोध आता है और फिर मरीचि जैसे ही गलती करते हुए अगले जन्म में इतनी ज्यादा शक्तियों की कामना करते हैं जो किसी के पास ना हो और धर्म ध्यान करते हुए मृत्यु के पश्चात देवलोक पहुंच जाते हैं! उधर विशाख नन्दी बहुत डर जाता है और सलाह मशवरा करके साधुओं की सेवा करके अपने पुण्य को बढ़ाता है! वहां से मृत्यु को प्राप्त कर विश्व भूति देवलोक में उत्पन्न होते हैं।

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