चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा पर्यूषण में लेट गो करने की जितनी तैयारी रखोगे उतने ही कषाय शान्त होंगे। अहंकार की भावना लेट गो करने में अड़चन डाल सकती है।
जो लेट गो करते हैं वे जीवन में बहुत कुछ पाते हैं और जो नहीं करते हैं वे बहुत कुछ गंवाते हैं। आत्मा की शुद्धि तभी होगी जब क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी कदन्न से मुक्ति मिलेगी। कषायों के बंधन में धर्माराधना शुद्धि के साथ पूरी नहीं होगी।
क्षमापना का वास्तविक अर्थ है सामने वाले की भूल, अपराध को भूल जाना। जीवन में क्षमा भाव की स्पर्शना जरूरी है। आज यह निर्णय करो कि पर्यूषण में आत्मा की शुद्धि करना है। धर्माराधना, क्रिया करो लेकिन आत्मशुद्धि करना आवश्यक है।
हमारे जीवन में आत्मशुद्धि व कषायों की शुद्धि के लिए लेट गो करने की तैयारी पूर्ण रूप से होनी चाहिए। इससे चारित्र, मिथ्यात्व, मोहनीय कर्मों का क्षय होगा। यह करने के लिए साधु संतों की निर्दोष क्रिया व चर्या का अवलोकन करना चाहिए।
उन्होंने कहा पुरुषार्थ चार प्रकार का होता है अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष। धर्म के पुरुषार्थ के बिना अर्थ, काम और मोक्ष का पुरुषार्थ नहीं कर सकते। तीव्र कदन्न की आसक्ति के कारण भय, शोक, दुख, जुगुप्सा, संक्लेश, आकुलता, व्याकुलता पैदा होती है। कदन्न के प्रति राग छोडऩे से ही पीड़ा कम होगी।
उन्होंने कहा बचपन से हमने धर्माराधना, जिनवाणी का श्रवण किया, कई सद्गुरु मिले लेकिन हमारी परिणति में कितना बदलाव आया यह सोचना है। हमारे अन्दर के कषायों से हमें मुक्ति नहीं मिलने के कारण अध्यात्म मार्ग का विकास नहीं हो पाता।
इन कषायों से मुक्ति पाने के लिए पर्वाधिराज पर्यूषण आ गए हैं। हमें जप, तप के अलावा हृदय की शुद्धि करनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो पाएगा तो हम यथार्थ फल से वंचित रह जाएंगे।