कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा बरस रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि सुबाहूकुमार मुनि सौधर्म कल्प में आयुष्य पूर्ण करके गये, वहां से देव शरीर को छोड़ करके मनुष्य भव को प्राप्त करेंगे, यहां पर केवली भगवान के बोध से मुनि बनकर अनेक वर्षों तक संयम का पालन करके अंतिम समय में संथारे के साथ आयु पूर्ण करके सनतकुमार नामक तीसरे देवलोक में जायेगे, वहां से पुनः मनुष्य भव प्राप्त करेंगे , दीक्षा ले करके तप संयम साधना के साथ आयु पूर्ण करके महाशुक्र नामक देव लोक का आयु भोगकर पुनः मनुष्य भव में जन्म लेंगे , पूर्व भव के समान ही यहां दीक्षा लेकरके साधना करते हुए आयु पूर्ण करके नवमें आनत नामक देवलोक में उत्पन्न होंगे ,वहां से चवकर के मनुष्य भव में आकर के दीक्षा लेकर तपस्या आराधना के द्वारा आत्मा भावित करते हुए ग्यारह वें आरण नामक देवलोक में जायेंगे – वहां से चवकर मनुष्य भव धारण करके अणगार धर्म की आराधना कर शरीरान्त हो जाने पर अर्थात आयु पूर्ण करके सर्वार्थसिद्धि विमान में देव बनेंगे , वहाँ का आयुष्य पूर्ण के महाविदेह क्षेत्र में संपन्न कुल में जन्म लेकर के द्दढ प्रतिज्ञ की तरह चारित्र ग्रहण करके आठों कर्मों को नष्ट करके केवली बन करके मोक्ष पद को प्राप्त करेंगे*
*इसी प्रकार दूसरे अध्ययन में ऋषभपुर नगर में स्तूप करण्ड नामक उद्यान था . वहां धन्य नामक यक्ष का मंदिर व धनावह नामक राजा सरस्वती रानी, रानी ने स्वप्न . देखकर पुत्र को जन्म दिया – नाम रखा भद्रनंदी कुमार सुबाहूकुमार की तरह ही शिक्षा दीक्षा विवाह का कार्य संपन्न कर आनंद सुखों का त्याग करके मुनि धर्म अंगीकार करेंगे , सुबाहूकुमार की तरह ही मनुष्य का भव देव का भव करके मोक्ष में जाएंगे*
*सुख विपाक का वांचन क्यों करते हैं – क्योंकि हर जीव को सुख चाहिये किसी को भी दुख नहीं चाहिये , दुःख किसी को पसंद नहीं है तो इस शास्त्र से सुख को प्राप्त करने का मार्ग मिल सकता है , जिस प्रकार सुबाहूकुमार ने तपस्वी मुनि को पूर्व भव सुपात्र दान देकर पुण्य उपार्जन किया , वैसे ही हम भी सुपात्र दान देकर के कर्मों की निर्जरा कर सकते हैं – विशेष, दान देते समय सुपात्र – व कुपात्र का ध्यान रखना चाहिये , जो दान दिया जा रहा है वह सत कार्य में लग रहा है , या लेने वाला , सिर्फ मौज शोख व व्यसन में तो नहीं लगा रहा है , इसका ध्यान रखना चाहिये जिससे हमारे कर्मों की निर्जरा हो जाये और हमारी आत्मा को सदगति मिले , अतः जब अवसर मिले भावना के साथ अवश्य दान करें*