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ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि
वीर स्तुति की चौथी गाथा में आर्य सुधर्मा स्वामी जंबू स्वामी से कहते हैं – इस गाथा से यह प्रमाणित हो जाता है कि अनात्म बाद का खंडन हो जाता है और पृथ्वी पानी आग हवा और वनस्पति में भी जीव है ऐसा सिद्ध होता है।

सर्वज्ञ वीर भगवान ने उर्ध्व लोक अधो लोक और मध्य लोक ये तीनों ही लोक में रहे हुए त्रसयानि कि हलन चलन करते हैं और स्थावर यानी कि जो एक स्थान पर स्थिर है। स्वयं के दुख की रक्षा करने में या हिलना डुलना नहीं कर सकते ऐसे दोनों प्रकार के जीवों को अपने ज्ञान में देखा है!

जीव जो द्रव्य और भाव प्राणों को धारण करते हैं, उन्हें जीव और प्राण कहते हैं। पांच इंद्रिय मन, वचन, काया, आयुष्य, और श्वांसोश्वास ये दश द्रव्य प्राण है। ज्ञान, दर्शन सुख और वीर्य ये आत्मा के भाव प्राण है।

संसारी जीव के दो प्रकार के हैं, एक त्रस और स्थावर त्रस, नाम कर्म के उदय से जिन्हें भय तकलीफ आदि से बचने के लिये गमना गमन करते हैं। जिनके बेइंद्रिय, तेंद्रिय, चोरेन्द्रिय और पंच इंद्रिय ये चार भेद है।

स्थावर पृथ्वी पानी आग वायु और वनस्पति ये पांच स्थावर है जो स्थावर नाम कर्म के उदय से स्थिर है। तेऊ काय और वायु काय ये गति की अपेक्षा से त्रस है। परंतु स्थावर नाम कर्म का उदय होने से वे सही रीत से तो स्थावर ही है।

पृथ्वी पानी अग्नि और वायु काय के जीव एक मुहूर्त में 48 मिनट में जघन्य एक बार और उत्कृष्ट 12824 बार जन्म मरण करते हैं। वनस्पति में साधारण निगोद की अपेक्षा से 65536 बार जन्म मरण करते हैं।

हमारे एक बार के स्वासौ स्वास जितने समय में ये जीव 17 या 18 बार जन्म मरण करते हैं। एक गणना के हिसाब से 17 भव होते हैं। परंतु भव तो पूरा ही होता है इसी से 17 या 18 भव कहना ही उचित है।

संसार समुद्र में डूबते हुए जीवो के लिए दिप के समान है श्रुत – चारित्र रूप धर्म भगवान ने बताया है और दूसरा अर्थ दीप भी होता है। मोहरूपी अंधकार में भटकते हुए आत्मा को प्रकाश देने वाला दीपक के समान धर्म है। भगवान ने ऐसा सामने भाव से कहा है!

कहा भी है जहा पुन्नस्स् कत्थई तहा तुच्छस्स कत्थई भगवान ने जिस तरह से पुण्यवान को उपदेश दिया। वैसे ही गरीब दरिद्र को भी बिना भेदभाव के उपदेश सुनाया और एक दोहे में कहते – बड़ों का आदर करें निर्धन को कहे दूर।

वो साधु मत जानजो रोटी तणो मजूर!! किसी भी प्रकार के बिना भेदभाव के बिना राग द्वेष के बिना भी जगत के प्रत्येक जीवों के लिए अनुपम धर्म भगवान ने कहा है। आज तो आप और हम देखते हैं ज्यादा लोग हो तो प्रवचन सुनाने के लिये तैयार, कम हो तो कुछ बहाना बनाकर चेले को भेज देते हैं।

लेकिन भगवान ने तो पोलास पूरी नगरी में अकेले अयवंता कुमार को जो कि छोटा बालक था वह प्रवचन में क्या समझता है पर उसे भगवान ने उपदेश सुनाया जो उपदेश राजा श्रेणिक को कहा वदी उपदेश अयवंता कुमार को सुनाया था।

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