चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा मनुष्य अपनी खुसी की वजह से अपनी आत्मा को दूषित करने में लगा है। आत्मा का स्वभाव शुद्ध रहना और मोक्ष के मार्ग पर जाना है। परंतु मानव उसे दुर्गति में पहुचाने का कार्य कर रहा है।
मनुष्य भूल गया है कि आत्मा सास्वत है कुछ समय के लिए उसे दूषित भले कर दिया जाय लेकिन उससे भी ज्यादा दुर्गति मनुष्य की होगी। कुछ मनुष्य अपने अच्छे कर्मों से चांडाल भव को पार कर लेते है और कुछ जन्म के बाद भी चाण्डाल ही रह जाते हैं।
सूत्रों का अध्यन करते समय अपने जीवन को बदलने वाली बातों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। अगर सूत्रों की विशेषता को अपनाने की ठोड़ी भी कोशीश कर ली जाए तो मानव भव सुंदर बन जायेगा।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में मनुष्य संसार के सुखों के अंदर इस तरह से मगन हो गए हैं कि वो अपनी चित्त का श्रवन नही कर पा रहे है। ऐसा नहीं है कि जीवन बदलने का मौका नहीं मिल रहा है। मौका तो सबको एक समान मिल रहा है लेकिन कुछ जीवन बदल लेते है और कुछ कर्मो को ही दोष देते जीवन निकाल लेते है। कर्मो को दोष देने वाले शायद भूल चुके हैं कि कर्मो के करता वो हैं तो भरता भी वही होंगे।
उन्होंने कहा कि कर्म करने में तो बहुत मजा आता है लेकिन जब उसका उदय होता है तो लोग पछतावा करते है और दूसरो को दोश देते है। लेकिन याद रहे कि आप जो कर रहे हैं उसका भुगतान परिवार वाले नहीं बल्कि स्वयं आपको ही करना है। इसके लिए किसी और को दोष देना गलत है।
अच्छा की उम्मीद करने वालो को पहले अच्छा करने की जरूरत होती है। जीवन मे अगर अच्छे कर्म होंगे तो कभी भी मुसीबत नहीं आएगी। जितना हो सके अच्छे कर्म करो वरना हिसाब बराबर होगा फिर रोने से कुछ हासिल नहीं हो सकता है। संचालन मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया