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ज्ञान वाणी

आलस्य मनुष्य का महान शत्रु : आचार्य श्री महाश्रमण

आलस्य मनुष्य का महान शत्रु : आचार्य श्री महाश्रमण

आरकोणम, वेल्लूर (तमिलनाडु): पचास वर्षों के बाद दक्षिण भारत में उदियमान बने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें महासूर्य, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी श्वेत रश्मियों के साथ आरकोणम की धरती पर उदित हुए तो पूरा आरकोणम आलोकित हो उठा। चारों ओर हर्ष, उत्साह और श्रद्धा का मानों ज्वार उठ रहा था।

सोमवार की प्रातः आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ तक्कोलम से प्रस्थान किया। आज आचार्यश्री के विहार मार्ग के दोनों किनारे दूर-दूर तक फैले खेतों में हरी सब्जियां लहलहा रही थीं। श्रमशील किसान कहीं सब्जियों के फलों को तोड़कर इकट्ठा कर बाजार जाने की तैयारी कर रहे थे तो कहीं सब्जियों की सिंचाई का कार्य भी हो रहा था कुछ खेत खाली भी पड़े थे।

तमिलनाडु की धरती होने के कारण नारियल के वृक्षों की शृंखला तो मानों साथ ही चल रही थी। आचार्यश्री लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आरकोणम नगर की सीमा में प्रवेश किया तो अपने आराध्य के अभिनन्दन को पूरा आरकोणम नगर ही उमड़ पड़ा। जैन-जैनेतर का भेद ही नहीं था।

स्थानीय निवासी भी ऐसे राष्ट्रसंत के दर्शन को लालायित नजर आ रहे थे। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री नगर स्थित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ भवन में पधारे। कुछ समय विश्राम के पश्चात् आचार्यश्री प्रवास स्थल से लगभग छह सौ मीटर दूर स्थित सी.एस.आई. सेण्ट्रल हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे।

आचार्यश्री के आगमन से पूर्व महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री ने उपस्थित सैंकड़ों श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि *ज्ञान दो प्रकार का होता है-एक कुंए की पानी की तरह और दूसरा ज्ञान कुंड की पानी की तरह होता है।* कुंए में जिस तरह से जल स्वतः ही निकलता रहता है उसी प्रकार पहले प्रकार का ज्ञान अतिन्द्रिय ज्ञान होता है। केवलज्ञान आदि कुंए के ज्ञान के समान है जो किसी पुस्तक आदि से नहीं बल्कि स्वतः स्वयं के भीतर से ही प्राप्त होता है। स्वाध्याय, श्रुतज्ञान आदि कुंड के पानी के समान है। जिस तरह से कुंड में कहीं से पानी भरा जाता है उसी प्रकार श्रुतज्ञान और स्वाध्याय के द्वारा ज्ञानार्जन किया जाता है।

ज्ञान के क्षेत्र में विकास करने वालों को नींद को बहुमान नहीं देना चाहिए। *नींद स्वाध्याय में बाधक तत्त्व है।* आदमी को जागरूक रहते हुए स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। *आलस्य मनुष्य का महान शत्रु है जो मनुष्य के भीतर ही रहता है।* आदमी को आलस्य से बचने का प्रयास करना चाहिए। विकास करने वाले का परिश्रम के समान कोई बंधु नहीं होता। आदमी को परिश्रम करने का प्रयास करना चाहिए। *आदमी को अति नींद और अति भोजन से बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्यादा मजाक, ज्यादा हंसना भी स्वाध्याय में बाधक बन सकता है।* इसलिए आदमी को इससे भी बचने का प्रयास करना चाहिए।

ज्ञान के पुनरावर्तन का भी प्रयास करना चाहिए। *ज्ञान का यदि पुनरावर्तन न किया जाए तो ज्ञान विस्मृत भी हो सकता है।* पुनरावर्तन से ज्ञान ताजा हो सकता है। घोड़े का अड़ना, पान का सड़ना, विद्या का भूलना और रोटी का जलना इसलिए हो सकता है कि उसे फेरा नहीं गया। इसलिए आदमी को सीखे हुए ज्ञान का पुनरावर्तन करते रहना चाहिए। आदमी को निरंतर ज्ञान प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए और आदमी के जीवन में ज्ञान और आचार का योग हो जाए तो जीवन अच्छा बन सकता है।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन से पूर्व ही समय होने के कारण आरकोणमवासियों को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) प्रदान की। प्रवचन पश्चात् आचार्यश्री ने लोगों को अहिंसा यात्रा के संकल्प करवाए। आचार्यश्री का अभिनन्दन करते हुए तेरापंथी सभा-आरकोणम के अध्यक्ष श्री चैनराज दरला, वर्धमान श्रमण संघ की ओर से श्री प्रकाश धारीवाल व मूर्तिपूजक समाज के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र छाजेड़ ने अपनी आस्थासिक्त भावाभिव्यक्ति दी।

महिला मंडल के साथ कन्या मंडल पर स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद ने पृथक-पृथक गीत का संगान कर अपने आराध्य की अभिवन्दना में अपने भावों को व्यक्त किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। *स्कूल के हेडमास्टर श्री एस.आर. केंडी ने अपने विद्यालय में पधारने हेतु आचार्यश्री के समक्ष अपनी प्रसन्नता व्यक्त की और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

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