समत्व भाव से करें महावीर शासन की सेवा
श्री जैन श्वेताम्बर धर्मसंघ की तीनों धाराओं के साध्वीवृन्द का सामूहिक प्रवचन
एम के बी नगर, चेन्नई ; व्यासरपाडी, एम के बी नगर जैन संघ की आयोजना में श्री जैन श्वेताम्बर धर्मसंघ के तीनों सम्प्रदायों के साध्वी समाज द्वारा श्री जैन स्थानक भवन, एम के बी नगर में सामुहिक प्रवचन आयोजित हुआ।
प्रात:काल श्री जैन स्थानक भवन में जब एक मंच पर जैन श्वेताम्बर की तीनों धाराओं के साध्वीवृन्द एक मंच पर अवस्थित हुए, तो पुरा स्थानक जय घोषों से गुंजायमान हो गया। सभी साध्वीवृन्दों ने भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हुए धर्म सभा को आध्यात्मिक ज्ञान की गंगा में निष्णात करवाया। जिन शासन के मार्ग पर चलने वाले साध्वीवृंदों ने एक स्वर में कहा कि साधना उपासना के मार्ग अलग-अलग है, लेकिन हम सब का लक्ष्य एक ही है, ज्ञान, दर्शन, तप की आराधना करते हुए मोक्ष मार्ग की ओर गतिशील होना एवं श्रद्धालुजनों को भी उस ओर ले जाने की प्रेरणा देना। सभी श्रावक समाज भी आज के इस सामुहिक मंच पर श्वेत सेना को देख कर हर्ष विभोर हुआ। नमस्कार महामंत्र के स्मरण के साथ कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।
भावधारा शुद्ध, धर्ममय हो : साध्वी जीनाज्ञाश्रीजी
मूर्तिपूजक आचार्य श्री तीर्थभद्रसूरीश्वरजी की शिष्या साध्वीश्री जयरेखाजी की सहवर्तनी साध्वी जीनाज्ञाश्रीजी ने कहा कि मनुष्य जन्म के साथ, जिन शासन की वाणी सुनना और उस पर आस्था के साथ अमल करना, बड़े सौभाग्य की बात है। विश्व के 32000 देशों में मात्र 25.5 देश ही आर्य क्षेत्र है, जहां अरहंतों की देशना होती है। हम अपने सौभाग्य से मिले इस मनुष्य जन्म का सत् करणी के उपयोग में ले। प्रवृत्ति कोई भी हो लेकिन परिणीति, भावधारा शुद्ध होनी चाहिए, धर्ममय होनी चाहिए।
आत्मा को प्रसन्न, पवित्र, निर्मल रखे : साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञाजी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञाजी ने कहा कि भगवान महावीर ने आचारांग सूत्र में बताया कि साधक अपनी आत्मा को प्रसन्न रखे, पवित्र रखे, निर्मल रखे। तो हमारा जीवन उत्सवमय बन सकता है। निमित, परिस्थिति के कारण कभी दु:खी नहीं बने। अगर परिस्थिति को नहीं बदल सकते तो, मन:स्थिति को बदल दिजीए।
इगों, अहंकार को छोड़ समभाव में रमण करें
साध्वीश्री ने परिवारों में विघटन के कारणों को बताते हुए कहा कि जीवन में इगों, अहंकार को छोड़ समभाव में रमण करना चाहिए। एक घर से दूसरे घर के संस्कार अलग होते है, उन्हें समय देकर, सामजस्य बैठा कर चलने से स्वयं भी प्रसन्न रह सकते है और परिवार भी खुशहाल रह सकता है।
वीतराग पथ के पथीक बनें : साध्वी श्री सिद्धिसुधाजी
स्थानकवासी गुरुदेव श्री गणेशलालजी म.सा. की सुशिष्या साध्वी श्री सिद्धिसुधाजी ने कहा कि कहना सरल होता है, करना मुश्किल होता है। हमें यह अनमोल अवसर मिला है, समय मात्र प्रमाद नहीं करें। छोटा सा जीवन हैं, इसे हम राग-द्वेष में न उलझाकर, सम भाव से विषमता को दूर करे, वीतराग पथ के पथीक बनें।
साध्वीश्री ने आगे कहा कि दलाल अलग अलग वस्तुओं की दलाली करता है, लेकिन सबका लक्ष्य पैसा कमाना होता है। हम सभी भी जिनेश्वर भगवान की आज्ञा में खीर की तरह हिलमिल कर रहते हुए, मिठास की सौरभ फैलाएं।
साध्वी सुविधीजी एवं साध्वी समितिजी म सा ने मिल जुल कर प्यार से रहना गीत की प्रस्तुति दी। साध्वी सुदर्शनप्रभा, साध्वी सिद्धियशा, साध्वी डॉ राजुलप्रभा, साध्वी डॉ शौर्यप्रभा ने ‘महावीर पंथी हम सारे, ध्वज ऊँचा फहराएंगे” गीत का सामूहिक संगान कर परिषद् को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए एस एस जैन संघ के मंत्री श्री सज्जनराज सुराणा ने आज के भौर की सराहना की और सभी साध्वीवृन्दों एवं श्रावक समाज का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर सभी जैन धर्मावलंबी बंधु-बहनों के साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित हुए।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती