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ज्ञान वाणी

आत्म विजेता ही सम्राट है: आचार्य पुष्पदंत सागर

आत्म विजेता ही सम्राट है: आचार्य पुष्पदंत सागर
कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मुथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा सच्चा सम्राट वही होता है जिसने अंहकार, अधिकार, आकांक्षाओं को जीता है। शरीर और इंद्रियों पर शासन कर रहा है वही सम्राट है। आत्म विजेता ही सम्राट है।
आत्म विजेता बनने के लिए पित्त की नहीं चित्त की, धन की धर्म, विज्ञान की नहीं वीतराग की कषाय की नहीं करुणा की जरुरत होती है। शक्ति और धनबल से दूसरों को दबाने वाला सम्राट नहीं भिखारी है।
जैन धर्म में तीर्थ शब्द महत्वपूर्ण है। श्वेताबंर ,दिगंबर, स्थानक वासी , मंदिरमार्गी सभी इसे मानते हैं। तीर्थंकर यानी जिसने चरम सीमा पा ली।
आत्म शुद्धि की चरम सीमा को पहुंच गए। परम ज्ञान केवल ज्ञान को उपलब्ध हो गए। आत्मा की तीन अवस्था होती है-शुभ, अशुभ ,शुद्ध। शुद्ध की परम अवस्था में दुनिया की शक्तियां तीर्थंकर के चरणों में नतमस्तक होती है। यह जीवन एक कपड़ा है। हृदय की मशीन चलती रहती है और चदरिया बनती रहती है। दिन रात अंधकार, अधिकार और अपेक्षा के चूहे इस चदरिया को काट रहे है।
शरीर में वात, पित्त और कफ होना रजरुरी है पर संतुलन में होना चाहिए। संतुलन बिगड़ता है तो शरीर की चादर बिगड़ जाएगी। लोग सिंहासन पर बैठकर राजनीति का खेल करते हैं, कूटनीति करते हैं। सिंहासन पर बैठने से ही कोई सम्राट नहीं होता।

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1 Comment

  1. आचार्य श्री का प्रवचन सुनने मिल रहा है हमेशा हम तो धेने हो गये, जय हो

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