चेन्नई. वडपलनी स्थित जैन स्थानक में होली चातुर्मासार्थ विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा मनुष्य भव की प्राप्ति होना परम दुर्लभ होता है। मनुष्य जन्म अनमोल है।
जीव अनादि काल से संसार में परिभ्रमण करते हुए पुण्य का घड़ा भरने पर मनुष्य भव को प्राप्त करता है। नर तन के समान कोई दूसरा रतन नहीं है। मनुष्य भव की दुर्लभता को समझने वाला ही उसका सदुपयोग कर सकता है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य में मानवता होनी जरूरी है। मात्र आकृति से ही नहीं प्रकृति से भी मानव बनना होगा। विश्व में मनुष्य की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है परंतु मानवता के गुण घटते जा रहे हैं।
जिस प्रकार गंध रहित फूल का कोई महत्व नहीं होता उसी प्रकार मानवता के बिना मनुष्य पशु के समान ही है।
पशु की अपेक्षा मानव में विशेष रूप से ऐसी विवेक बुद्धि होती है जिसके द्वारा हिताहित का ज्ञान रहता है।
अनुकंपा, सरलता, भद्रता, विनय, परोपकारिता आदि मानवता के लक्षण है। इन गुणों को अपनाने पर ही यह मनुष्य भव सार्थक सिद्ध होगा।