चेन्नई. आंखों की शोभा देवगुरु के दर्शन से ही बढ़ती है। ज्ञानी कहते हैं कि इन आंखों के अंदर मनुष्य चाहे जितना कुछ कर ले लेकिन इनकी शोभा तो गुरु दर्शन से ही पूरी होगी। जीवन के अंदर धर्म का विकास होने के बाद आत्मा सर्वोच्च गुण प्राप्त करती है। ऐसा उत्तम कार्य जब भी करने का मौका मिले तो पीछे नहीं हटना चाहिए।
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा परमात्मा की दिव्य वाणी सुनने का मौका मनुष्य भव में मिलना बहुत बड़ी बात है। मनुष्य भव के अलावा ऐसा मौका और किसी को नहीं मिलता है। देवगति को अगर परमात्मा का सानिध्य प्राप्त भी हो जाए तो भी आत्मा की निर्जरा नहीं कर सकते। यह सौभाग्य सिर्फ मनुष्य भव को ही मिला है।
देवता भी मनुष्य जीवन पाने की इच्छा रखते है ताकि परमात्मा की वाणी से जीवन को सफल बना सके, लेकिन इस अवसर को खोकर मानव मुर्खता का कार्य कर रहा है। जिस भव को पाने के लिए देवता परेशान होते है, वह भव मानव जीवन को आसानी से मिल गया है। उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। जीवन को सफल बनाने के लिए मनुष्य को इस अवसर का लाभ उठा लेना चाहिए। एक बार समय जाने पर पश्चाताप करने से भी कुछ हासिल नहीं होगा।
सागरमुनि ने कहा आत्मा के हित के लिए मनुष्य को आचरण करना चाहिए। आचरण के मार्ग पर चल कर जीवन में बदलाव किया जा सकता है। धर्म के कार्यो से खुद को जोड़ कर मनुष्य अपने कर्मो की निर्जरा कर ऊपर जा सकता है। प्रवचन सुनने से कुछ नहीं मिलता बल्कि कहे गए बातों का अनुसरण करने से जीवन सफल बनता है। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंमल छल्लाणी के अलावा अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने संचालन किया।