सादर प्रकाशनार्थ- 13 फरवरी, पुण्य तिथि पर विशेष- महान् युग़ पुरूष, श्रुताचार्य, साहित्य सम्राट, वाणी भूषण, उत्तर भारतीय प्रवर्तक, आराध्य गुरूदेव पूज्य श्री अमर मुनि जी म.सा. प्रस्तुति- डॉ. श्री वरूणमुनि “अमर शिष्य” प्रज्ञा के जीवंत प्रतिमान आराध्य गुरूदेव, श्रुताचार्य, पूज्य प्रवर्तक श्री अमरमुनिजी म.सा. ने अपनी निर्मल प्रज्ञा ज्योति से समस्त जिनशासन एवं सम्पूर्ण मानव जाति को आलोकित किया । उन्होंने संघ और शासन सेवा के नये आयाम खोले और स्व-पर कल्याण की नई दिशाओं को उद्घाटित किया।
श्रमण संघ के ऐसे देदीप्यमान उज्ज्वल शुभ नक्षत्र का जन्म अविभाज्य भारत के क्वेटा (बलूचिस्तान) वर्तमान पाकिस्तान में भादवा सुदी पंचमी, वि.सं. 1983 (तदानुसार ई.स.1936) को श्रद्धानिष्ठ सुश्रावक श्री दीवानचन्द जी मल्होत्रा के गृह आँगन में श्रद्धानिष्ठ माता श्रीमती बसंती देवी जी की पावन कुक्षी से हुआ । भारत विभाजन के समय वे अपने माता-पिता के साथ विस्थापित हो कर भारत आये, किन्तु अम्बाला रेलवे स्टेशन पर माता-पिता से बिछुड़ गये । घोर उदासी और निराशा के उन क्षणों में लुधियाना निवासी एक जैन श्रावक ने उस बालक की व्यथा सुनकर वे उसे अपने साथ घर ले गये ।
आचार्य श्री आत्मारामजी म.सा. के परम भक्त श्रावकजी एक दिन बालक अमर को लुधियाना के रूपा मिस्त्री गली स्थित जैन स्थानक में आचार्यश्री के दर्शनार्थ लेकर गये । उस दिन महाश्रमणी श्री सीताजी म.सा. की सुशिष्या साध्वी रत्ना श्री महेन्द्राजी म.सा. का दीक्षा महोत्सव देखकर बालक अमर की मनोभूमि में विरक्ति के बीज अंकुरित हुए और वे आचार्य श्री का प्रवचन श्रवण कर संबोधि को उपलब्ध हुए । दिव्यद्रष्टा आचार्य भगवन ने इस विलक्षण बालक को अपने अन्तेवासी पौत्र सुशिष्य भण्डारी श्री पद्मचन्द्रजी म.सा. के वरदहस्त में सौंपते हुए कहा कि इस कोहिनूर को बड़े ध्यान से तराशना, यह एक दिन जैन संस्कृति का महान नायक बनेगा।
वि.सं. 2008 (तदानुसार ई.सं.1957 ) भादवा सुदी पंचमी को सोनीपत मण्डी (हरियाणा) में उत्तर भारतीय प्रवर्तक प.पू. भण्डारी श्री पद्मचन्द्रजी म.सा. के सुशिष्य के रूप में बालक अमर की जैन दीक्षा सम्पन्न हुई और वे अमरमुनिजी बने ।
गुरू के कुशल निर्देशन में श्री अमरमुनिजी म.सा. ने भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शन का अगाध तलस्पर्शी अध्ययन किया । कुशल प्रवक्ता होने के कारण जनमानस उन्हें वाणी का जादूगर संबोधित करते थे। वे साधक, सर्जक और महान संघटक होने के साथ स्पष्टवादी और अनुशासन प्रिय थे ।
युगप्रधान आचार्य श्री शिवमुनिजी म.सा. ने सन् 2003 में आग्रहपूर्वकउन्हें उत्तर भारतीय प्रवर्तक पद से अलंकृत किया । अपने गुरू के नाम से आपने अनेकानेक संस्थाओं की स्थापना की, जिनमें पद्म धाम, पद्मप्रकाशन (नरेला मंडी,दिल्ली), गुरू पद्म ज्ञान मंदिर (विभिन्न क्षेत्रों में) , गुरू पद्म जैन आई हॉस्पीटल (पश्चिमविहार, दिल्ली), गुरु पद्म जैन सहायता कोष (विभिन्न क्षेत्रों में) , गुरू पद्म जैन साधना भवन (मानसा मंडी, पंजाब) , गुरू पद्म जैन चैरिटेबल फिजियोथेरेपि हॉस्पीटल (पंजाब व गंगानगर-राजस्थान) आदि मुख्य हैं ।
संयम साधना के साथ श्रुताचार्य श्री अमर मुनिजी ने सर्जना के अनेक प्रतिमान स्थापित किये और जैनागमों का सचित्र और अंग्रेजी भाषा में संपादन किया, इसके अतिरिक्त भी अनेक कृतियों की रचना की ।
आपने अनेक सुयोग्य शिष्यों को संयम प्रदान किया, जिनमें उपप्रवर्तक डॉ. श्री सुव्रतमुनिजी म.सा., सेवारत्न श्री सुयोग्यमुनिजी म.सा., उपप्रवर्तक श्री पंकजमुनिजी म.सा., तप सूर्य श्री पुनीतमुनिजी म.सा., सेवाप्रज्ञ श्री हर्षमुनिजी म.सा. , दक्षिण सूर्य डॉ.श्री वरूणमुनिजी म.सा. आदि प्रमुख हैं। 13 फरवरी 2013 वसंत पंचमी के दिन लुधियाना (पंजाब) में संथारा समाधि सहित सिविल लाइन जैन स्थानक में इस महान व्यक्तित्व का महाप्रयाण हुआ । ऐसे युग पुरूष सद्गुरूदेव को अनंत श्रद्धा सहित कोटी-कोटी नमन-वंदन…!