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ज्ञान वाणी

अपने कर्मों का फल स्वयं को होगा भोगना : आचार्य श्री महाश्रमण

अपने कर्मों का फल स्वयं को होगा भोगना : आचार्य श्री महाश्रमण

सविता इंजीनियरिंग कॉलेज में धर्मसभा के साथ विद्यार्थीयों को प्रतिबोध देते हुए जैनाचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि दो प्रकार की विचारधाराएं हैं – आस्तिक विचारधारा, नास्तिक विचारधारा| आस्तिक विचारधारा का अनुसार हमारे शरीर में एक आत्मा नाम का तत्व विद्यमान हैं| जैसे मकान में आदमी रहता है, तो मकान अलग चीज है, आदमी अलग चीज है| इसी प्रकार आत्मा शरीर में निवास करती हैं, परंतु शरीर अलग है, आत्मा अलग हैं| आत्मा को स्थाई, अमर माना गया है| आत्मा का कभी नाश नहीं हो सकता|  दुनिया में कोई ऐसा शस्त्र नहीं है, चाकू नहीं है, जो आत्मा को काट सके, टुकड़े कर सके| अग्नि में भी यह ताकत नहीं, की वह आत्मा को जला सके| पानी में भी यह ताकत नहीं, की आत्मा को आर्द्ध बना सके, भिगो सके| धूप में यह शक्ति नहीं, की आत्मा को सूखा सके|

      शरीर विनाशधर्मा

    आचार्य श्री ने आगे कहा कि शरीर का विनाश होता है, शरीर को जलाया जा सकता है, टुकड़े किए जा सकते हैं| यह शरीर अनित्य हैं, मृत्यु के बाद शरीर छुटता हैं, आत्मा दूसरे जन्म में नया शरीर धारण कर लेती हैं| चूंकि आत्मा स्थाई हैं, तो वह एक जन्म के बाद, दूसरा जन्म भी लेती है| जैसे एक आदमी पुराने जीर्ण – शीर्ण वस्त्र को छोड़ देता है, नए वस्त्र पहन लेता है, इसी प्रकार आत्मा भी एक शरीर को छोड़कर, दूसरे शरीर को धारण कर लेती हैं|

     कर्म फल भोगने में नहीं बंटा सकते कोई भी पांती

   आचार्य श्री ने आगे कहा कि आस्तिक विचारधारा में पुनर्जन्म को माना गया हैं| पुनर्जन्म है, तो पूर्वजन्म अपने आप हो जाएगा| आत्मा, जीव अपने कर्मों के आधार पर सुख – दुःख को भोगता हैं| यानी पुण्य पाप का बन्धन करती है और फिर उसका फल आत्मा भोगती हैं| जाति लोग भी पाप में भागीदारी नहीं दे सकते| न मित्र, न बेटे, न बंधव, न पत्नी, कोई भी पाप का फल भोगने में भाग नहीं बंटा सकते, पांती नहीं कर सकते| जब पाप का उदय होता है, अकेली आत्मा ही दुःख भोगती हैं| क्योंकि कर्म जो करता है, वह कर्म अपने कर्ता का अनुगमन करता हैं|

    कषाय रूपी कर्म, आत्मा को बनाते परवश

    आचार्य श्री ने आगे कहा कि आस्तिक विचारधारा ने बताया कि साधना के द्वारा बन्धनों से मुक्त होकर आत्मा, मोक्ष स्थान को भी प्राप्त कर सकती हैं, जहां जाने के बाद, वापस कभी जन्म लेना ही नहीं पड़ेगा| अब प्रश्न यह पैदा होता है, कि पुनर्जन्म क्यों होता है?  शास्त्रकार ने कारण बताया कि हमारी आत्मा के जो विकार हैं, गुस्सा, अहंकार, लोभ इत्यादि होते हैं, तो ये आत्मा को आगे से आगे ले जाते हैं| ये कषाय रूपी कर्म है, जो संसारी आत्मा को परवश बनाते हैं| आत्मा को जहां ये ले जाए, जाना पड़ता हैं| जैसे हवा जिधर ले जाती है, उधर बादल चले जाते हैं| तो कर्मीधिन आत्मा को जिधर कर्म ले जाते हैं, उधर चली जाती हैं|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि नास्तिक विचारधारा कहती हैं कि पुनर्जन्म नहीं होता हैं| है सो यही जीवन है, आगे – पीछे कुछ नहीं होता| जब तक जियो,  सुख से जियो, खूब घी पिओ| पैसे नहीं है, तो उधार ले लो, ॠण ले लो|  क्योंकि शरीर भस्मीभूत हो जायेगा, जला दिया जाएगा|  फिर पुनर्जन्म जैसी कोई बात नहीं है, इस जीवन में मौज करो|  यह नास्तिक विचारधारा का सिद्धांत हैंं| यह काम, भोग, संसार के वैश्विक सुख, हाथ में आए हुए हैं| मरने के बाद स्वर्ग मिलता है, कौन – किसने देखा है| परलोक है या नहीं, अभी जो भौतिक सुख प्राप्त हैं, उनको तो भोगों| यह सोच कर के आदमी भोगासक्त भी बन सकता हैं| फिर सोचता है, अगर पुनर्जन्म है, तो औरों का होगा, वह मेरा भी हो जाएगा, सबको मिलेगा, वह मेरे को भी मिलेगा, आगे की चिंता क्यों करूं|


आचार्य श्री ने आगे कहा की है कई बार जब जीवन का अन्तिम समय सामने आता है, तब आदमी सोचता है, कि मैंने तो धर्म नहीं किया, कुछ अच्छा काम नहीं किया| मैंने सुना तो है कि नरक गति होती है, अब मेरा क्या होगा? मेरा जीव कहां जाएगा?  आचार्य श्री ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि उनको बाद में यह चिंता करनी पड़ सकती हैं, जिसने जो धार्मिकता का, सज्जनता का, जीवन नहीं जीया| तो बाद में चिंता करें, उससे तो अच्छा, पहले ही चिंता करले, कि मैं जीवन कैसा जियूं, कि आगे मेरी गति खराब नहीं हो| तो एक प्रश्न आता है कि परलोक है कि नहीं| हैं, तब तो कुछ अच्छे कर्म, ध्यान – साधना करें| ये है ही नहीं, तो क्यों फालतू अच्छा जीवन जीएं|

 परलोक है या नहीं जीएं अच्छा जीवन

  आचार्य श्री ने आगे कहा कि कवि ने बड़ा सुंदर चिंतन दिया है, कि अगर तुम्हारे मन में परलोक के विषय में संदेह है, संदिग्ध हैं, तो एक काम करो, तुम खराब काम मत करो| गलत काम जैसे हत्या करना, धोखा देना, चोरी करना, ऐसे खराब काम छोड़ दो, मत करो| जितने हो सके, अच्छे काम करो|  परलोक है या नहीं, इस बात को दिमाग से निकाल दो, तुम अच्छा जीवन जियो| तुमने अच्छा काम किया, किसी को मारा नहीं, धोखा नहीं दिया, तो परलोक नहीं है, तो भी अच्छी बात है| अगर परलोक हैं, तो तुम्हें अच्छा फल मिलेगा| परलोक है, तो भी अच्छा जीवन जियो, नहीं है, तो भी अच्छा जीवन जियो|


आचार्य श्री ने कहा कि जीवन ईमानदारी, अहिंसा, खान-पान का संयम, अध्यात्मिक साधना में कुछ समय लगाना, ये चार चीजें जीवन शैली के साथ में जुड़ जाती हैं, तो आदमी का यह जीवन भी अच्छा बनता है, आगे भी सद्गति मिलने की संभावना बन जाती हैं|  जीवन में अगर पाप ज्यादा हैंं, माया, गुढ़ माया, झूठ – कपट, कम तोल-माप, हिंसा आदि-आदि तो आस्तिकवाद सिद्धांत के अनुसार आदमी मर करके नरक गति में जा सकता हैं|

     धार्मिक जीवन शैली का करे निर्धारण

  आचार्य श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि आदमी को नास्तिक वादी नहीं बनना चाहिए| आस्तिकवाद में आस्था हो, ना हो, पर नास्तिकवादी तो नहीं बनना चाहिए| वह अच्छा रास्ता नहीं हैं| आदमी आस्तिकवाद का रास्ता सही हैं, ऐसी संभावना मानकर चलें| परलोक की संभावना को स्वीकार करके चले| अच्छा जीवन जीएं| जितनी हो सके, अच्छी साधना करें, धर्म के पथ पर चले, यह अच्छा रास्ता हैं| नास्तिकवादी बन कर के गलत रास्ते पर चले, यह रास्ता बढ़िया नहीं हैं| तो हमें आस्तिकवाद को सामने रखकर के अपनी जीवन शैली का निर्धारण करना चाहिये|

    मुनिश्री अनेकांत कुमार ने तमील भाषा में विद्यार्थीयों को अहिंसा यात्रा और उनके त्रिसुत्रों को बताया| कॉलेज विद्यार्थीयों, शिक्षकों ने त्रिसुत्रों को स्वीकार किया| युनिवर्सिटी प्रशासन से श्री एन एम विरेन ने स्वागत भाषण दिया| श्रीमती अनीता व अन्य ने गीतिका की प्रस्तुति दी| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया| इससे पूर्व चेन्नई के वानागरम से लगभग 16 किलोमीटर का विहार कर सविता इंजीनियरिंग कॉलेज पधारे पर कॉलेज प्रशासन के साथ विद्यार्थीयों ने परम्परागत रूप से आध्यात्मिक गुरु का भावभिना स्वागत किया|

   *✍ मीडिया प्रभारी*
*तेरापंथ युवक परिषद्, चेन्नई*

       स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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