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श्रद्धा में वह शक्ति है जो दुःखों में भी सहनशक्ति भर देती है: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

श्रद्धा में वह शक्ति है जो दुःखों में भी सहनशक्ति भर देती है: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

Sagevaani.com @चेन्नई: किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरीश्वरजी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी के रविवारीय प्रवचन का विषय था स्टाॅप, लुक एंड गो यानी रूको, देखो और आगे बढ़ो। जब भी कोई सज्जन व्यक्ति कुछ काम करता है, तो वह विचार करके आगे बढ़ता है। विचार किए बिना प्रगति नहीं होती है। वहीं, एक अहंकारी व्यक्ति गति करेगा लेकिन प्रगति नहीं करेगा। अंधकार व अहंकार एक ऐसा वातावरण है जिसमें आंखें होने पर भी नहीं दिखता। व्यक्ति में शक्ति है, फिर भी तप नहीं करता, उसका कारण है प्रमाद।‌ भगवान है, फिर भी भक्ति नहीं करता, उसका कारण है मिथ्यात्व। शक्ति है, फिर भी प्रवचन श्रवण नहीं करता, उसका कारण है विकृत सोच और प्रमाद करने की आद

भाग्य की लकीरें स्वयं के कर्मों ने बनाई है। इसके बीज पहले से पड़े हुए हैं, जो आज उसका वृक्ष बना है। उन्होंने कहा हरेक बीज के अंदर वृक्ष है, हरेक आत्मा में परमात्मा है, हाथ की हरेक लकीर में भाग्य बना हुआ है। उन्हें खोलने के लिए पुण्य, पुरुषार्थ और अनुकूलता की आवश्यकता है। सच बोलने के लिए सब ज्ञान देते हैं लेकिन सच बोलने की उनकी अपनी तैयारी कितनी है? गुरु का प्रत्येक वचन शिष्य के लिए पाप को शुद्ध करने के लिए होता है। शिष्य के पास चाहिए केवल श्रद्धा के भाव। प्रतिकूलता के काल में भी श्रद्धा हो तो वह पुण्य का निर्माण करवाएगी। श्रद्धा में वह शक्ति है जो दुःखों में भी सहनशक्ति भर देती है।

आचार्यश्री ने आगे कहा वर्तमान में लोगों की सोच कहां जा रही है? प्राचीनता को अपना लो तो पवित्रता अपने आप आ जाएगी। उन्होंने कहा तीन चीजों का इन्वेस्टमेंट ज्यादा करने से आउटकम ज्यादा मिलेगा, वे है प्रेम, सम्मान और अपमान। राग धीरे-धीरे बढ़कर मोह का स्वरूप ले लेता है। वर्तमान में जितना अपमान करोगे, उतना भविष्य में वापस मिलेगा।

अचारांग सूत्र में बताया गया है राग और मोह करना भी कषाय है। उन्होंने कहा बुरे काम में अटक जाना, नहीं तो भटक जाओगे और लोगों की नजर में खटक जाओगे। आज तक अपनी आत्मा पाप के कारण ही दुःखी हुई है। पाप को जो स्टॉप करता है, वह अंतरात्मा का दर्शन जल्दी करता है। सज्जनों की शक्ति, संपत्ति, सत्ता, सौंदर्य अन्य लोगों के उपयोग के लिए होती है। ज्ञानी कहते हैं मन का तूफान स्वयं को झेलना पड़ेगा, इसलिए स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।

जहां श्वास होता है, वहां मन जुड़ जाता है। मन के निग्रह के लिए शास्त्राभ्यास यानी स्वाध्याय करना चाहिए। उन्होंने बताया कि छःकाय जीवों में सबसे उपकारी पृथ्वीकाय है, इसलिए पहले पृथ्वीकाय को बताया है। पृथ्वी की खासियत है जितना भी वजन, बोझ आ जाए, वह टूटती नहीं है। पृथ्वी को माता, सूर्य को पिता और आकाश को परिवार कहा गया है। ज्ञानी कहते हैं अनुभवी, उपकारी और वृद्ध लोगों के वचनों को मत टालो। दुःख के काल में इनसे अनुभव ज्यादा मिलते हैं।

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