शरीर और शरीर से सम्बन्धित अंग प्रत्यंग के कण-कण की रचना करने वाला नाम कर्म है। यश-अपयश, सुस्वर-दुस्वर और सौभाग्य-दुर्भाग्य भी नाम कर्म की देन है। आत्मा के अरुपी गुण को ढक कर रूपी (रूप, रस, गन्ध, स्पर्श) शरीर और उससे सम्बन्धित अंग-उपांग प्रदान करना नाम कर्म का कार्य है।
जैसे चित्रकार अच्छी-बुरी विविध आकृतियाँ बनाता है, उनमें विभिन्न रंग भरता है और उन्हें सुरूप-कुरूप व सुडौल-बेडौल रूप में चित्रित करता है। इसी भाँति नाम कर्म आत्मा के अच्छे-बुरे विभिन्न रूप बना देता है। इसी कर्म के कारण एक मनुष्य काला-कलूटा या बीभत्स है तो एक सुन्दर एवं चित्ताकर्षक है।
नाम कर्म दो प्रकार का है, शुभ नाम कर्म और अशुभनाम कर्म। शुभ प्रकृतियाँ पुण्य रूप है तो अशुभ प्रकृतियाँ पाप रूप हैं। नाम कर्म का स्वरूप जानकर यह भी सिद्ध हो जाता है कि शरीर और शरीर से सम्बद्ध जो भी मिला है, वह
परमात्मा द्वारा नहीं अपितु नाम कर्म के प्रभाव से प्राप्त हुआ है।
यदि मनुष्य इतना समझ ले कि सुडौलता-बेडौलता, कालापन-गोरापन और सम्मान-अपमान आदि कर्मों का फल है तो जीवन में राग-द्वेष की मात्रा कम हो सकती है। फलतः मनमोहक रंग-रूप को देखकर राग नहीं होगा और कुरूपता के प्रति द्वेष नहीं होगा।
भाव, भाषा और शरीर की वक्रता से अर्थात् मन-वचन-काया की एकरूपता न होने से अशुभ नाम कर्म का बन्ध होता है एवं मन-वचन-काया की सरलता व एकरूपता से शुभ नाम कर्म बँधता है। अतः अपनी भावधारा को सरल रखते हुए पाप रहित मृदु शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ताकि शरीर द्वारा जो क्रिया होगी वह निष्कपट रूप से होगी। मन, सक्षम है
वाणी और काया की ऐसी सरलता मोक्ष का द्वार खोलने में सक्षम है।