Sagevaani.com @किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने अष्टान्हिका प्रवचन में कहा पौषध औषध जैसा है। पौषध श्रमण जीवन का टेस्टिंग सेंटर है। पौषध यानी जो आत्मा में रहे हुए क्रोध, मान, माया, लोभ और अन्य कुव्यसनों को दूर करे। पौषध टेलिस्कोप है, यह आत्मा की सूक्ष्म चीजों का अवलोकन करता है। यह आत्म गुणों के दर्शन करने का साधन है। यह अट्ठारह पापस्थानकों को सुलाने का काम करता है, इसलिए यह हमारे दोषों के लिए एनेस्थीसिया का काम करता है।
उन्होंने कहा जगत में तीन दुःख है अभाव, विभाव और दुर्भाव। इनको दूर करने के उपाय है सद्भाव, अहोभाव और स्वभाव। उन्होंने कहा जगत में जितनी चोइस ज्यादा है, उतनी ही नोइस ज्यादा है। वस्तुओं की चाह में दुःख बढ़ता है। आत्मा नाशवंत नहीं है, शास्वत है। मृत्यु में केवल आत्मा और शरीर की कनेक्टिंग दूर होती है। उसे मृत्यु के नाम से बोलते हैं। सत्य यह है कि न तो आत्मा मरती है, न ही शरीर।
आचार्यश्री ने श्रावक के वार्षिक कर्तव्यों का विश्लेषण करते हुए कहा संघपूजा कृतज्ञता का भाव लाता है। यह संघ के उपकारों का बहुमान है। साधर्मिक के प्रति हमारे कोमलता के भाव प्रकट होने चाहिए। अपनी आत्मा की मलिनता को दूर करने के लिए स्नात्र उत्सव का आयोजन करना चाहिए। छरीपालित यात्रा संघ करवाने के अनेक फायदे हैं। उन्होंने कहा अवसर होने पर थोड़ा-थोड़ा आडंबर भी करना चाहिए। ज्ञानी कहते हैं आडंबर भी कभी-कभी कल्याणकारी होता है।
कई बार इससे लोगों के भाव जगते हैं और अन्य लोग प्रभावित होते हैं। श्रुतपूजा के तहत आगम का श्रवण, ज्ञान भंडार का संरक्षण, हाईटेक लाइब्रेरी एवं ज्ञान संग्रह भंडार का निर्माण करना चाहिए। श्रुतपूजा द्वारा ज्ञान का नहीं बल्कि विवेक का भी निर्माण होता है। परमात्मा का शासन कई भवों की चिंता करता है। रात्रि भक्ति सौम्यता से करनी चाहिए। उझमणा यानी जो तप हमने किया है, उसकी अनुमोदना करना।
उन्होंने कहा पाप की शुद्धि करने का यह अनुपम अवसर आया है। हम कितने भी पाप कर लें, ज्ञानियों ने प्रायश्चित करने की उदारता दी है। ऐसा उदार शासन हमें मिला है। प्रायश्चित दस तरह के बताए गए हैं आलोचना, प्रतिक्रमण, आलोचन प्रतिक्रमण, मिश्र, विवेक, कायोत्सर्ग, तप, छेद, अनवस्थाप्य और गुप्तवास।
उन्होंने कहा पाप करना गुनाह है लेकिन पाप का बचाव करना महागुनाह है। व्यक्ति के साथ ख्वाहिशें चलती है वही कहलाती है संकल्प या विकल्प। जितने विकल्प ज्यादा, उतना तनाव ज्यादा। विवेकी लोग पाप भी करते हैं तो धर्म का अंश तो अवश्य रखते हैं। मन हो या ना हो, शुभ कार्य करते ही रहना चाहिए। शुक्रवार से आचार्यश्री की निश्रा में कल्पसूत्र के प्रवचन होंगे।