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परमार्थ सेवा का भाव, सुखी जीवन का मूल मंत्र: डॉ . श्री वरूण मुनि जी

परमार्थ सेवा का भाव, सुखी जीवन का मूल मंत्र: डॉ . श्री वरूण मुनि जी

श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मासार्थ विराजित, दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार परम पूज्य डॉ . श्री वरुण मुनि जी म. सा. ने को धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति को अपनी सोच हमेशा सकारात्मक पाज़िटिव रखनी चाहिए।

क्योंकि कहा गया है कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।हमेशा यह याद रखें कि हमारे दैनिक जीवन व्यवहार में जो हम अपने या दूसरों के बारे में अच्छा – बुरा सोचते हैं उसका प्रभाव आगे चलकर घटित होने की संभावना बनी रहती है।

क्योंकि आप जो सोचते हो भावनाये् उन शुभ अशुभ तरंगों को खींचती है। भावना भव नाशिनी। अर्थात् भावना भव का नाश करती है। किसी के साथ शत्रुता रखना, क्लेश करना, द्वेष रखना ये सब पाशविक प्रवृति है। जानवर आपस में लड़ते हैं।

तात्पर्य यह है कि द्वेष,कलह आदि दुर्गुण प्रायः पशुओं में पाये जाते हैं। एक गली का श्वान दूसरी गली के कुत्ते से शत्रु भाव रखता है। कलह करता है। इसलिए यह मानवीय गुण न होकर पाशविक है!मैत्री मानवीय गुण हैं।

जब मनुष्य जन्म,पशु जन्म से उत्तम माना जाता है तो यह मनुष्य का कर्तव्य है कि जो भी पाशव वृतियां या दुर्गुण अपने में नजर आवे तो उन्हें तत्काल ही दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। सबसे हिलमिल कर रहें। प्रेम भाव और भातृभाव रखें। दूसरों का भला देखकर प्रसन्न हो। दूसरों की सहायता करना, सेवा की भावना, दान परोपकार की भावना रखना यही मानवीय गुण है और एक अच्छे इंसान की पहचान है। आप क्या है यह चिंतन आप स्वयं करें।

उन्होंने कहा कि जिसे मनुष्य की कोटि में अपनी गणना करनी हो वह परम मानवीय गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करें। यही प्रभु की वाणी और पूज्य गुरु भगवन्तों की सदशिक्षा का सार है।

मुनि श्री ने परम पूज्य गुरुदेव प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज की महान मानवीय गुणों से ओतप्रोत अपने उपकारी दादा गुरुदेव की कीग‌ई पुर्ण समर्पित सेवा भावना की चर्चा करते हुए

उनके सद उपकारों को याद करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने मंगल पाठ प्रदान किया। प्रारंभ में युवा मुनि श्री मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने गुरु भक्ति गीत प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम का संचालन राजेश भाई मेहता ने किया।

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