श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर में चातुर्मास हेतु विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि म.सा. ने शनिवार को अहोई अष्टमी व्रत के पावन अवसर पर अपने प्रेरक प्रवचनों के माध्यम से मातृत्व के सच्चे स्वरूप और व्रत की आध्यात्मिक महत्ता पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। मुनि श्री ने कहा कि —“अहोई अष्टमी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि यह मातृत्व के प्रेम, त्याग और स्नेह का जीवंत प्रतीक है। मां अपने बच्चों की दीर्घायु, आरोग्यता और मंगल जीवन के लिए उपवास रखती है। इस दिन की गई प्रार्थना और तपस्या से संतान का जीवन सद्गुणों, संस्कारों और समृद्धि से परिपूर्ण होता है।”उन्होंने आगे कहा कि —“व्रत का उद्देश्य केवल शरीर को संयमित करना नहीं, बल्कि मन को भी सात्त्विक बनाना है।
जब माता अपने संकल्प में श्रद्धा और शुद्ध भावना जोड़ती है, तब उसका आशीर्वाद संतान के लिए दिव्य कवच बन जाता है। यही मातृत्व का सच्चा अध्यात्म है।” मुनि श्री के प्रेरक प्रवचनों से समूचा वातावरण मातृत्व की पवित्र भावनाओं और आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो उठा। उपस्थित महिलाओं ने व्रत के सच्चे अर्थ को समझते हुए निष्ठा, प्रेम और आत्मिक समर्पण से इसे पालन करने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम के दौरान मधुर वक्ता रूपेश मुनि जी म.सा. ने अपने सुरम्य स्वर में भक्ति भाव से ओतप्रोत भजन प्रस्तुत किए।इसके उपरांत राष्ट्र संत श्री पंकज मुनि जी म.सा. ने सभी को मंगल पाठ प्रदान कर शुभाशीष दिए। कार्यक्रम का सुसंगत संचालन श्री राजेश मेहता ने किया।