हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान हैl वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं, वह इस प्रकार हैंl
बंधुओं जैसे कि जेसेकि सुपात्र दान देने से कर्मों की महान निर्जरा होती है सुपात्र दान देने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैl साधु जो अपने जीवन निर्वाह के लिए शुद्ध आहार पानी ग्रहण करते हैं उसे गोचरी कहते हैंl पांच महाव्रत धारी साधु साध्वी वृंद को श्रावक निर्दोष और अपनी बेरावे उसे सुपात्र दान कहते हैंl विवेक करते हुए सामान्य भोजन के समय घर का दरवाजा खुला रखें या ऐसा हो बाहर से खुल सके लाक ना लगे कुछ परंपरा में सुधार हुआ फल और सूखा मेवा भी सचित माना जाता हैl
मुख्य भोजन से दूरी रहे पूछ कर वेरा सकते हैं और व्यक्ति दरवाजा ना खोले जो कच्चे पानी हरी सब्जियां सेल वाली घड़ी मोबाइल आदि से संयुक्त हो तो वह व्यक्ति दरवाजा ना खोले उन्हें आहार वहर आने के लिए आगे नहीं आना चाहिए घंटी नहीं बजना चाहिएl सात आठ कदम सामने लेने जावे सर झुका कर मत्थण वदांमिकहना बोले मन में प्रश्नोता के भाव रखें तथा बोले बड़ी कृपा की बारंबार हमें सेवा का मोकाप्रदान किया जैसे कि ऋषभदेव जी वह महावीर स्वामी ने पूर्व भरो में सुपात्र दान देकर धर्म का मूल संकेत प्राप्त कियाl
कालांतर में तीर्थंकर बन शाली भद्र ने पूर्व बहू में तपस्वी संत को खीर वहराई एवं अतुल्य वैभव के स्वामी बने नेम राजुल ने पूर्व में प्राशुक जल संतो को बेराया एवं तीर्थंकर गोत्र का महान बंध प्राप्त कियाl अरिहंत की भक्ति से सद्गुण की प्राप्ति होती हैंl सबको उनकी कृपा से साधना मिलती है साधना से व्यक्ति साधक बनता हैl साधना करता हुआ जिन बन जाता है जिन बन जाता हैl 14 प्रकार का दान निर्दोष देखकर संसार परिद सकते हैंl