जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने नवकार महामंत्र की महिमा के सम्बन्ध मे बोलते हुए कहा कि इसमें संसार की पवित्र आत्माओं को नमन किया गया है। चाहे वे आत्माए किसी भी पंथ ग्रन्थ की धर्म व सम्प्रदाय की रही हो जिन्होंने संसार से उपर उठ कर अपने जीवन को परम विशुद्ध अवस्था मे पहुंचा दिया है वे हमारे लिए प्रतिपल प्रतीक्षण वंदनीय अर्चनीय है!मुनि जी ने साधक के लिए कुछ नियम व उप नियमो का उल्लेख करते हुए कहा साधना के समय स्थान की पवित्रता आवश्यक है स्थान से ही वातावरण का निर्माण होता है! इसीलिए स्थानक मन्दिर गुरूद्वारे गिरजाघर का महत्व रहा है कि वहां का माहौल भक्ति पूर्वक रहता है! वहां जाते ही मन मे नमन का भाव जागृत होता है अहंकार का विसर्जन होता है संसार की आसक्ति दूर होती है!
स्थान के साथ साथ आसन आदि का भी अपना महत्व है! आसन जो धर्म कार्य मे प्रयोग उपयोग मे आते हो, वे आसन अशुभ माने जाते है जिन पर बैठकर खाना पीना सोना व्यापार व्यवसाय का उपयोग होता हो आसन मात्र वो ही हो शुद्ध! उन का या कपडे का हो जो नियमत साधना मे प्रयोग आ सके क्योंकि उस आसन मे साधना की ऊर्जा एकत्रित होने लगती है! शुभ पुद्दगल पर परमानों का संयोग होता है! इसी प्रकार साधना मे संयम का निर्धारण भी जरुरी है जो समय निशिचत किया गया हो उसी समय साधना सम्पन्न होनी चाहिए!
ग्रंथो के अनुसार ब्रम्ह मुहूर्त की साधना प्रात : 4 बजे से 6 बजे की समय अवधि फलदाई होती है! इसी प्रकार माला भी सूत की या काठ की रुद्राक्ष की तुलसी की उत्तम मानी जाती है! सोने चांदी या प्लास्टिक की मालाओ का उपयोग नहीं होना चाहिए, माला के साथ मन की शुद्धि अर्थात शान्त चित से साधना होनी चाहिए हड़ बढ़ाहट की साधना असफल होती है! गुरु की आज्ञा या सान्निध्य साधना को सफल बनाता है! साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नमो आयरियाण पद की साधना विधि व विवेचना पूर्वक कराई गई! महामंत्री उमेश जैन द्वारा सामाजिक सूचनाएं प्रदान की गई।