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समय गोयम ! मा पमायए: साध्वी संबोधि

समय गोयम ! मा पमायए: साध्वी संबोधि

शास्त्रों में मानव जन्म की प्राप्ति को दुर्लभ बताया गया है यदि पुण्योदय से मिल भी गया तो उसकी सफलता के लिए शुभ कर्म करना चाहिए न कि इसे मौज-मस्ती, काम भोगों में व्यतीत करना चाहिए। मान लो किसी व्यक्ति ने एक कीमती घड़ी ली और उसमें सोने की चैन डलवा कर उसे सुन्दर बनाकर मित्रों व परिवार के अन्य सदस्यों के सामने बार-बार उसका प्रदर्शन करने लगा और उसमें चाबी देना भूल गया तो वह बन्द हो जाएगी।

घड़ी कितनी ही मूल्यवान क्यों न हो, एक दिन वह भी खराब होने की है। यदि उसकी सुरक्षा करते रहे तो जीवनभर साथ दे देगी।

इसी प्रकार मानव जन्म को सार्थक करने के लिए इसे सजाने-संवारने के स्थान पर इसका सदुपयोग किया जाए या करें।

 यदि एक पल के लिए भी अपने मन में मलीन भावना उत्पन्न हो जाती है तो आप अनन्त पाप कर्मों का बंध कर लेते हैं और क्षणभर के लिए भी आपके मन में शुभ भावना उत्पन्न होती है तो अनन्त पुण्य कर्म परमाणु बंध सकते हैं। उस समय आप आस्रव और बंध से मुक्त होकर अनन्त कर्म परमाणुओं की निर्जरा के भागी होंगे।

 जीवन में थोड़ा-सा भी समय बहुत मूल्य रखता है। कभी-कभी ऐसे महत्त्वपूर्ण अवसर आते हैं, जिन पर आपके भावी जीवन का आधार है। उन बहुमूल्य क्षणों में यदि आप प्रमादमय होंगे तो आपका भावी जीवन बिगड़ जायेगा और यदि सावधान होंगे, आत्माभिमुख होंगे तो आपका भविष्य मंगलमय बन जायेगा। पर कठिनाई यह है कि हम उन दुर्लभ क्षणों को पहचान नहीं सकते। न ही जान पाते कि वे अनमोल क्षण कब आयेंगे और कब चले जाएंगे।

इसका एक ही उपाय है, सदैव सावधान रहा जाये। सदैव अपनी मनोवृत्तियों पर नियंत्रण रखा जाए और क्षणभर के लिए भी प्रमाद की स्थिति

उत्पन्न होने न दी जाये।

 भगवान महावीर ने बतलाया है-

*समय गोयम ! मा पमायए।*

अर्थात्, हे गौतमां समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। जो समय मिला है. उसका अधिक से अधिक अच्छा उपयोग कर लेना ही बुद्धिमान पुरुष का कर्त्तव्य है। समय चूका कि फिर पछतावा ही रह जायेगा।

घड़ी मनुष्य को सजग रहने की प्रेरणा देती है :

घड़ी कभी एक पल का भी विराम नहीं लेती और अपनी टिक टिक की ध्वनि से मानव को प्रतिपल समय के व्यतीत होने तथा सजग रहने की चेतावनी भी देती रहती है।

 भले ही आत्मा अमर है किन्तु यह मानव शरीर तो अमर नहीं है, कभी भी यह नष्ट हो सकता है। संसार में देखा जाता है कि कोई व्यक्त्ति हास-परिहास में निमग्न है किन्तु क्षणभर में ही वह भूमि पर लुढ़क जाता है और उसकी आत्मा इस देह से कूच कर जाती है। कोई साधारण-सी ठोकर लगते ही उस सड़क पर पुनः चलने के बजाय किसी अदृश्य दिशा की ओर गमन कर जाता है। अगणित मनोरथों को पूरा करने का जोड़-तोड़ करता हुआ व्यक्ति किसी भी पल अपने संकल्पों को सदा के लिए त्याग करने को बाध्य हो जाता है।

मनुष्य की मृत्यु ध्रुव यानी अनिवार्य है तथा उसके आने का समय भी निश्चित नहीं है, अतएव प्रत्येक विवेकशील प्राणी को अपने जीवन की महत्ता तथा उसकी नश्वरता को समझ कर समय से पूर्व ही जाग जाना चाहिए।

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