नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने कहा कि ऐसा एक भी जीव नहीं जो सुख नहीं चाहता। सबसे बड़ा दुःख जन्म-मरण का है। जीवन तो सबको प्रिय है पर ज्ञानीजन कहते हैं जन्म है तो मरण भी अवश्य है । सभी जानते है फिर भी मरण की कोई कामना नहीं करता । स्वयं सुख पाने के लिए अनेक जीवों को दिन रात पीड़ा देता रहता है ये संसारी जीव का व्यव्हार माना जाता है तो ये व्यवहार गाढ़े कर्म करता है ।
जिनेश्वर का कथन है कि आप किसी जीव को पीड़ा पहुंचा सुख की प्राप्ति नहीं कर सकते, फिर भी जीव हंसते हंसते पाप कर्म कर नरक गति आदि का बंध करता है। दुख स्वयं के द्वारा उपार्जित किये गये कर्म है इसे भोगना ही पड़ता है । भोगे बिना छुटकारा नहीं है इसलिए भगवान कहते हैं। धर्म ध्यान के लिए सदाकाल लालायित रहो प्रत्येक क्षण, धर्म ध्यान की भावना होनी चाहिए जिससे पाप से छुटकारा मिल सके क्योंकि अव्रती को भगवान ने सबसे बड़ा पापी बताया अव्रती कब कैसे पापमय प्रवृत्ति करेगा ये ध्यान नहीं रहता। प्रत्याखान लेने वाले जीव के मन मे थोड़ा भी पाप की भावना नही आयेगी। व्रत लेने से मन, वचन काया के पाप के रास्ते बंद हो जाते हैं।
फिर धर्म सब ओर से रक्षा करता है मंगल करता है। धर्म जैसा साथी, माता, पिता, बन्धु जैसा कोई नहीं है एक मात्र धर्म है जो तीनो काल में, सदाकाल हितकारी व कल्याणकारी सार्थक उच्च श्रेष्ठ सुख प्रदान करने वाला है। आज पुण्यवाणी से मिला है । कल मिलेगा या नहीं पता नहीं । उत्तम धर्म को पाना दुर्लभ है। आज मिला है तो व्यर्थ मत करो इसे बहुमूल्य वस्तु मान कर शरीर के सभी अंगो में धारण कर लो। दसो प्राण धर्म में रमण करना शुरु कर देंगे जिससे एक दिन आप सभी पापों से छुटकारा पाकर सिध्दशिला में जा कर ज्योत के समान विराजमान हो जाओगे ।