Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

सतत संयम स्वीकारने का भाव में रहना चाहिए

सतत संयम स्वीकारने का भाव में रहना चाहिए

आचार्य मेघदर्शनसूरीश्वर की निश्रा में गुजरातीवाड़ी जैन संघ में रविवार को सुबह 6 से 8 अष्टप्रकारी संगीतमय पूजा में 500 बच्चों प्रभु भक्ति में लीन बनकर अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने की दिशा में आगे बढ़े। 500 से ज्यादा सिद्धितप के तपस्वीयों ने छट्ठ करके पारणा का संघ को लाभ दिया। सोमवार को सुबह 8:30 बजे अट्ठम् का पच्चक्खाण दिया जायेगा। शासनस्पर्शना शिविर में आचार्य ने बताया कि जिनशासन को बार बार नमस्कार करते ही रहना चाहिए। “नमो तित्थस्स” मंत्र की माला गिनते ही रहिए, हर भव में जिनशासन पाने की प्रार्थना भी करते रहिए, इससे जिनशासन के साथ ऋणानुबंध तैयार होगा, जिसके प्रभाव से मोक्ष पहुंचाने वाला जिनशासन हरेक भव में मिलता रहे।

सतत संयम स्वीकारने का भाव में रहना चाहिए। संयम स्वीकारने के पहले हमारी आत्मा की भूमिका तैयार करनी चाहिए। ध्यान में रखने जैसा है कि पाप करने से दु:ख या भवभ्रमण नहीं होता है लेकिन हो गए पापों का पश्चाताप नहीं करते है, गुरु के पास आलोचना नहीं करते है, दिया हुआ प्रायश्चित का वहन नहीं है तो ही दु:ख आते है, संसार में भटकना होता है। महावीर भगवान ने त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में कान में सीसा का गरम रस गुस्से में डाला। उसका प्रायश्चित एक से आठ मासक्षमण से पूर्ण हो सकता था लेकिन उन्होंने उस भव में आलोचना नहीं की उस पाप का पश्चाताप नहीं किया तो 11,50,945 मासक्षमण किया तो भी वह पाप खतम नहीं हुआ।

अंतिम भव में ग्वाले ने उनके कान में कील ठोका। परमात्मा की करुणा विश्व के सारे जीवों पर करुणा बरसाती रही। परमात्मा कहते हैं साधु नहीं बन सकते तो कम से कम श्रावक या इंसान तो सच्चे बनो। सच्चा इंसान वह है जो आँख, हाथ, मुँह और ह्रदय को स्वच्छ रखता है। आँख निर्विकार, हाथनीति युक्त, मुँह व्यसनरहित और ह्रदय कोमल चाहिए।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar