सपने कभी पूरे नहीं होते और संकल्प कभी अधुरे नहीं रहते। जीवन संकल्प में है; संकल्प के बिना जीवन स्वप्न है और संकल्प है तो स्वप्न भी सत्य हो जाते हैं। संकल्प ही वह कीमिया है जो कंकर-पत्थरों को हीरों में बदल देती है और उसके अभाव में प्राप्त अवसर भी चूक जाते हैं। एक बीज का घनीभूत संकल्प ही उसे कष्ट, प्रतिकूलता और परिताप को सहने की क्षमता देता है। चाहे वह स्वेच्छा से सहन को या मजबूरी से परन्तु वह बीज कभी घबराता नहीं।
यदि संकल्प हो तो मार्ग सुगम हो जाता है। जीवन के अंतिम क्षण तक वह नन्हा-सा बीज हर स्थिति में स्थिर रह कर उसे पार कर लेता है। वह न कभी इधर-उधर भागता है और न बचने का कोई गलत रास्ता खोजता है क्योंकि सभी प्रतिकूल स्थितियों को वह एक कसौटी समझता है।
एक बीज की वृक्ष तक की यात्रा दुष्कर अवश्य है पर असंभव नहीं। बीज का संकल्प ही शक्ति बन जाता है। कमजोर बीज भी शक्तिशाली चट्टानों को संकल्प शक्ति के आधार से ही जीत लेता है। इसी प्रकार मनुष्य का दृढ़ संकल्प भीतर की सुप्त शक्तियों को जगाने वाला होता है। संकल्प दृढ़ हो तो गंगोत्री ही सागर बन जाती है क्योंकि संकल्प की कमी ही सागर की दूरी है।
संकल्पशक्ति अणुशक्ति से भी अधिक प्रबल है। यही मनुष्य का संचालन करने वाली मुख्य शक्ति है। जैसे सूर्य की किरणें संग्रहित होकर अग्नि बन जाती है, ऐसे ही संग्रहित संकल्प शक्ति स्वतः ही संग्रहित और तीव्र हो जाती है।
आज के मनुष्य की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसके पास निर्णय करने की क्षमता नहीं है। जिसने निश्चय कर लिया उसका संकल्प हो गया। भीतर के विचारों में स्थिरता नहीं है। विचारों में स्थिरता पैदा होते ही वे सजीव हो उठते हैं। किसी भी निर्णय को टिकाने के लिए संकल्प बहुत आवश्यक है। यदि हम एक विचार पर दृढ़तापूर्वक स्थिर हो जाते हैं तो उसमें प्राण पैदा होते हैं और तब उन्हें कोई तोड़ नहीं सकता।
जब कभी अस्थिर मन से कोई निर्णय लिया जाता है तो निर्णय लेने से पूर्व ही उसके चित्त का एक कोना यह कहता है कि यह निर्णय बदलेगा और ऐसा खंडित चित्त ही दृढ़ नहीं रहने देता। संकल्प से अभिप्राय जहाँ कोई द्वन्द्व नहीं, भीतर कोई दूसरा स्वर नहीं ऐसा एकीभाव।