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विश्व विजेता से महान होते हैं- आत्म विजेता= डाॅ. वरुण मुनि

विश्व विजेता से महान होते हैं- आत्म विजेता= डाॅ. वरुण मुनि

धर्म परिवर्तन नहीं, जीवन परिवर्तन करवाते हैं- जैन संत

श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बेंगलुरू में चातुर्मासार्थ विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार प. पू. डॉ श्री वरुणमुनिजी म. सा. ने अपने मंगलमय उदबोधन में फरमाया कि जैन शब्द जन शब्द से बना है । जब जन शब्द पर विनय और विवेक की दो मात्राएं लग जाती हैं तो वह जैन बन जाता है । जैन वह है जो जिन का उपासक है । जैन किसी के धर्म परिवर्तन में विश्वास नहीं करता बल्कि यह जीवन परिवर्तन करने की एक शैली है । धर्म चाहे कोई भी हो, हर धर्म प्रेम, मानवता और सेवा की बात करता है किंतु व्यक्ति ने अपने स्वार्थवश धर्म की अलग-अलग परिभाषाएं कर दी है । जैन दर्शन हमारी जीवन शैली परिवर्तन करने का एक अद्भुत दर्शन है । जिन्होंने अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर ली, वे जिनेंद्र कहलाते हैं । संसार पर विजय प्राप्त करने की कोशिश तो सिकंदर ने भी की किंतु अंत में वह स्वयं से ही हार गया । संसार में पूजा तो त्याग, साधना और चारित्र की होती है । भोगी को सिंहासन पर बिठाया जा सकता है किंतु त्यागी को तो पूजा जाता है । दूसरों पर विजय प्राप्त करना सरल है किंतु जो अपनी आत्मा को जीत लेता है, वही वीतरागी बनता है, जिनेंद्र बनता है । संसार को जीतना सरल है किंतु स्वयं पर विजय प्राप्त करना बहुत कठिन है। संसार जीतने वाला सबको जीतकर भी हार जाता है । जो अपने इंद्रिय-विषय और कषायों को जीत लेते हैं, वही वास्तव में जिनेंद्र बनते हैं। जो एक आत्मा को जान लेता है, वह संसार की सभी आत्माओं को जान सकता है । स्वयं को जीत लेने वाला और स्वयं को जान लेने वालों को संसार नमन करता है । बाहर का ज्ञान भीतर आने के लिए सहयोगी बन सकता है । भगवान ऋषभदेव ने असी, मसी और कृषि का ज्ञान दिया । असी यानी शस्त्र-अस्त्र का ज्ञान । मसी यानि व्यापार- वाणिज्य का ज्ञान और कृषि यानी खेती,धन-धान्य आदि का ज्ञान । इस प्रकार संसार चलाने के ज्ञान के साथ प्रभु ने अध्यात्म का भी ज्ञान दिया, जिससे आत्मा सन्मार्ग की ओर आगे बढ़ सके । व्यक्ति के जीवन में तीन अवस्थाएं हैं – बचपन, जवानी और बुढ़ापा । बचपन विद्यार्जन और ज्ञानार्जन के लिए होता है । जवानी या युवावस्था धनार्जन के लिए होती है और बुढ़ापा धर्माजन के लिए होता है। इस प्रकार व्यक्ति व्यवहारिक ज्ञान के साथ आध्यात्मिक ज्ञान में भी निष्णात बने, यही धर्म का उद्देश्य है । इंसान के लिए उसका परिवार उसकी दुनियां हो सकती है किंतु संत के लिए सारी दुनियां ही उनका परिवार है । अतः हम जन से जैन और जैन से जिन बनने के लिए सदैव पुरुषार्थरत रहें, यही आत्म कल्याण का सन्मार्ग है ।

मधुर वक्ता श्री रुपेशमुनि जी म. सा. ने एक अत्यंत मधुर भजन की प्रस्तुति दी, जिससे सभी श्रोता भक्ति के भाव में निमग्न हो गए । प्रवचन के पश्चात सभा का कुशल संचालन संघ के अध्यक्ष श्री राजेश भाई मेहता ने किया। अंत में उपप्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी म. सा. ने मंगल पाठ के साथ सभा का समापन हुआ।

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