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विचारोकी निर्मलता, आचरण की पवित्रता मे धर्म है! धर्म प्रदर्शन मे नही, आत्म दर्शन मे है – साध्वी स्नेहाश्री जी म.सा.

विचारोकी निर्मलता, आचरण की पवित्रता मे धर्म है! धर्म प्रदर्शन मे नही, आत्म दर्शन मे है – साध्वी स्नेहाश्री जी म.सा.

आज पर्युषण पर्व के छठम दिवसपर अंतगड सुत्रका वाचन पु. श्रुतप्रज्ञा श्री जी म.सा ने किया! समवसरण यात्रा गुरुमॉं पु. चंद्रकला श्री जी म.सा. ने करायी एवं भगवान महावीर स्वामीजी के जीवन शैली पर अपनी बात रखी! धन है वे भाग्यशाली, धन और स्वास्थ्य वे सौभाग्यशाली, धन स्वास्थ्य, धर्म वे महाभाग्यशाली है ! धर्म स्वास्थ्य धन नही वे दुर्भाग्यशाली है! ज़िंदगी के साथ भी और ज़िंदगी के बाद भी साथ है एकमात्र धर्म! धर्म करने की उम्र नही होती! धर्म कल्पव्रु़क्ष समान है! धर्म धोका नही मौक़ा देता है! धर्म जीवन जिनेकी अदभुत कला है!

चलो तोभी धर्मपुर्वक, बैठो तो भी धर्मपुर्वक, भोजन करो तो भी धर्मपुर्वक, भोजन बनाओ तो भी धर्मपुर्वक! यह बात कही साध्वी स्नेहाश्री जी म.सा. ने ! आज जंबुकुमार के जीवनपर आधारित नाटिका सादर की गयी! ग्रुहस्ती जीवन से संय्यम यात्रा तक की सफ़र दिखायी गयी! जंबु कुमार का पात्र साकार किया सौ माधुरी भंसाली, जंबुकुमार के माता पिता ज्योति एवं राजेंन्द्र खिंवसरा, आठ राणीया बनी कोमल छाजेड, कोमल भलगट,गुंजन छाजेड,आरती मांडोत, गितांजली मुथा, संध्या मांडोत, प्रिया लुणावत, जयश्री भलगट, राणीयों के माता पिता बने सौं. कांता ललवाणी एवं सुभाष जी ललवाणी, प्रभव स्नेहल मुनोत, साथी मयुरी कांकरीया! आज के धर्मसभा मे उपस्थित महानुभवों का स्वागत किया संघाध्यंक्ष सुभाष ललवाणी ने!

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