चेन्नई :यहाँ विरुगमबाक्कम स्थित एमएपी भवन में विराजित क्रांतिकारी संत श्री कपिल मुनि जी म.सा. ने शनिवार को आयोजित 21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव में भगवान महावीर की अंतिम देशना श्री उत्तराध्ययन सूत्र पर प्रवचन के दौरान कहा कि जीवन मे शांति तभी संभव है जब भीतर में शक्ति और सामर्थ्य हो ।
भीतर से सामर्थ्य के ख़त्म होने पर व्यक्ति निराशा और हताशा का शिकार बन जाता है । जीवन की इस दुर्बलता को ख़त्म करने का एकमात्र उपाय है सहनशीलता । मुनि श्री ने कहा कि जिंदगी के प्रत्येक मोर्चे का मुकाबला करने के लिए परिषह विजय की साधना बेहद जरुरी है ।
जीवन में आगत कष्ट, दुःख को समभाव से सहन करना ही परीषह विजय है । सहिष्णुता कमजोरी नहीं बल्कि व्यक्तित्व को निखारने वाला एक महत्वपूर्ण गुण है । इस गुण के अभाव में व्यक्ति की सभी विशेषता अर्थहीन हो जाती है । जिसे सहना आता है वही जीवन को जीना जानता है ।
सहनशीलता एक ऐसी क्षमता है जो हमें विकट हालातों में भी सक्रिय बनाये रखती है । सहिष्णुता की जीवन में बहुत ही उपयोगिता है ।मुनि श्री ने कहा कि यह दुनिया रंग बिरंगी और विचित्रता से भरी है यहाँ सब की रुचि, स्वभाव, विचार, रंग-रूप एक सामान नहीं होता । व्यक्ति को जीवन में अनेक कड़वे मीठे अनुभवों के दौर से गुजरना होता है ।
कभी खुशी, कभी गम, हार जीत, उत्थान- पतन हानि-लाभ, निंदा-प्रशंसा आदि का हमारे जीवन पर व्यापक असर पड़ता है और जीवन संघर्ष में अनेक उतार-चढ़ाव, विपदाएं, प्रतिकूलताएं सहनी होती है। इन प्रतिकूलताओं के चलते हमें हरपल आगे बढ़ना है तो सहनशक्ति का विकास करना होगा । सहन शक्ति के विकास से व्यक्ति शक्तिशाली और समर्थ बनता है ।
जीवन शक्ति और सहनशक्ति दोनों एक दूसरे के पर्याय है । प्रतिकूल विचार, व्यक्ति और परिस्थितियां को सहना ही सहिष्णुता है। सहिष्णुता अनेक सद्गुणों की जननी है । सहिष्णुता से जीवन शक्ति की वृद्धि होती है जो की आनन्द की अनुभूति का कारण बनती है ।
धीरता, गंभीरता, सहजता आदि सभी विशेषताओं का समावेश होता है । उन्होंने कहा कि प्रतिकूलताएं कष्ट, दुख, जीवन की परीक्षा है और जब हम इसमें उत्तीर्ण हो जाते हैं तो आनन्द मिलता है। व्यक्ति को सफल नहीं होने पर निराश होने के बजाय धैर्य का दामन थामना चाहिए । निरंतर अभ्यास के चलते सहनशीलता हमारे स्वभाव का एक अंश बन जाती है।
फिर सब कुछ आसानी से सह लेने में किसी भी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता । फिर सफलता व्यक्ति के क़दमों में हाजिर हो जाती है । मुनि श्री ने कहा कि जीवन प्रकृत्ति का अनमोल उपहार है । इसे तनाव और अवसाद से बोझिल करना सफल जीवन की निशानी कतई नहीं कहा जा सकता ।
अवसादग्रस्त जीवन जीना नहीं बल्कि जीवन को खोना है । जीवन को सफल और शानदार बनाने के लिए अन्य सद्गुणों के साथ सहनशक्ति के गुण का होना अनिवार्य शर्त है। इस एक गुण के आचरण से व्यक्ति के भीतर समरसता छाया की भांति चली आती है फिर मान-सम्मान, निंदा-स्तुति, प्रलोभन, कलंक आदि की घटना कोई मायने नहीं रखती ।
सब के सब प्रतिकूलता व्यर्थ हो जाती हैं। यही सच्ची सहिष्णुता है और इसी में जीवन का वास्तविक आनन्द है। इसके पूर्व वीरस्तुति और उत्तराध्ययन सूत्र का पारायण किया गया धर्म सभा का संचालन संघ मंत्री महावीरचंद पगारिया ने किया ।