लौकोत्तर और लौकिक पर्वों को बताते हुए रक्षाबंधन पर्व मनाने को किया रेखांकित
Sagevaani.com @चेन्नई; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में रक्षाबंधन पर्व पर धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि रक्षाबंधन का पर्व प्रेम, पवित्रता, सुरक्षा का पर्व है। नर और नारी की पवित्रता के सम्बन्धों को स्थापित करने वाला पर्व है। राखी के कच्चे धागें में के बदले बहन उपहार, भेट की नहीं चाहती, रुपये, पैसे की परम्परा वर्तमान में चल रही है। अपितु बहन तो चाहती है कि भाई से सुरक्षा। इस दुनिया में अनेकों रिश्ते है। भाई बहन की जोड़ी अद्भुत होती है। यह जोड़ी पवित्र प्रेम की निशानी है। स्वाभाविक रूप से आज के दिन भाई और बहन दोनों को एक दूसरे की याद आती है।
◆ मुझे वहीं जलाएं जो राम हो
विशेष पाथेय प्रदान करते हुए गुरुश्री ने कहा कि उस रावण ने तो संकल्प लिया था, कि जब तक कोई स्त्री मुझे प्रसन्नता से नहीं कहेगी, तब तक मैं उसका स्पर्श नहीं करुंगा। सीता को वह लेकर आया था, लेकिन उसने सीता को हाथ भी नहीं लगाया।
लेकिन आज चारों ओर रावण ही रावण नजर आ रहे है। रावण को जलाते समय उसने यही कहा कि मुझे भले ही जलाओं, कोई ऐतराज नहीं, क्योंकि मैने काम ही ऐसा किया है, मेरी यही प्रार्थना है कि मुझे वहीं जलाएं जो राम हो। कल्पना करें कि हमारे हृदय में राम बसा है या रावण। बहन के कहने पर भाई ने संकल्प लिया कि वह सदैव माता पिता के साथ रहेगा और भाई ने भी बहन से वचन चाहा कि वह शादी होने के बाद अपने पति के कान नहीं भरेगी और अपने सास ससुर के साथ प्रेम, वात्सल्य के साथ रहेंगी। यह संकल्प सभी के लिए अनुकरणीय है, प्रेरणास्रोत है। निश्चित रूप से सभी यह संकल्प ले ले तो परिवार, समाज में सर्वत्र शांति स्थापित हो सकती है। आज के दिन हमारे अन्तर के झगड़े खत्म हो जाएं। बहन कर्णावती की राखी को मान देते हुए हुमायूं दोड़ा चला आया, वह भाव हमारे भीतर में पैदा हो, अनवरत चलता रहे।
◆ भारत में दो तरह के पर्व मनाये जाते है- लौकोत्तर और लौकिक
आचार्य भगवंत ने कहा कि भारत में दो तरह के पर्व मनाये जाते है- लौकोत्तर और लौकिक। जैन धर्म अध्यात्म का धर्म है, आत्मा, मोक्ष का धर्म है। जैन धर्म त्याग, समता सिखाता है। किस प्रकार हम अपने कर्मों की निर्जरा करे, यह सिखाता है। पापों से छुटने का धर्म है- जैन धर्म। जैन धर्म लोकोत्तर पर्वों को मानता है। पर्यूषण महापर्व, ज्ञान पंचमी, मौन एकादशमी पर्व ये सब लोकोत्तर पर्वों की गणना में आते हैं। लौकोत्तर पर्व हमेशा त्याग, उपवास करके मनाये जाते है। लौकिक पर्व खाकर मनाये जाते है- यह दोनों पर्वों में मूल अन्तर है। दिपावली के दिन अगर नहीं खाया, तो समझों हमने दीपावली नहीं मनाई। परमात्मा का अनुयायी है, अध्यात्म को मानता है और संवत्सरी के दिन अगर खा लिया, तो उसका चेहरा उतर जाता है। पश्चाताप के साथ चिन्तन करता है कि संवत्सरी की जैसी आराधना करनी चाहिए, वैसी वह कर नहीं पाया।
◆ विभिन्न पर्वों के मनाने के आधारों को किया उल्लेखित
गुरुवर ने कहा कि लौकिक पर्व भी अनेकों चलते हैं जैसे अचरज के कारण, भय के कारण। सूर्य पूजन आश्चर्य के कारण पैदा हुआ पर्व है। इस दुनिया में सभी व्यक्ति विश्राम करते हैं, लेकिन सूर्य और चन्द्रमा कभी विश्राम नहीं करते, निरन्तर गतिशील रहते हैं। समुन्द्र पुजन भी अचरज के कारण मनाया जाता है। समुन्द्र में अनेकों नदियों का पानी आकर मिल जाता है फिर भी वह अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ता।
अगर छोड़ दे तो सारी धरती तबाह हो सकती है क्योंकि धरती पर 70 प्रतिशत पानी है। उसी की प्रतिकृति हमारा शरीर भी है, इसलिए कहा जाता है कि भोजन भूख से कम करे और दुगना पानी पियें। जिससे शरीर का संतुलन बना रहे। कुछ पर्व भय के कारण चलते है जैसे नाग पंचमी- नाग प्रसन्न हो, शीतला सप्तमी- माता के प्रकोप से बचने के लिए मनाये जाते है। कुछ पर्व जाति के आधार पर मनाये जाते है- ब्राह्मणों का रक्षाबंधन, क्षत्रियों का दशहरा, वैश्यों का दीपावली, शुद्रों का होली। ये चार जातीयों के चार मुख्य पर्व है। दशहरा- राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से विजयोत्सव मनाया गया। यह क्षत्रियों का पर्व है। क्षत्रिय समाज की, संस्कृति की, देश की रक्षा करते है। उस दिन वे अपने शस्त्रों तलवार इत्यादि की पूजा करते हैं।
◆ सनातन संस्कृति के आधार पर राक्षस बलि राजा की घटना का किया विशद् विवेचन
गच्छाधिपति ने सनातन संस्कृति के आधार पर रक्षाबंधन पर्व मनाने के बारे में बताते हुए राक्षसों के राज बलि की घटना का विवेचन करते हुए कहा कि वह इन्द्र का सिहासन प्राप्त करने के लिए, पुण्यार्जन बढ़ाने के लिए दान देने लगा। इससे इन्द्र, देव घबरा गए, विष्णु के पास गये। विष्णु ने भी दान की नहीं अपितु दान के पिछे की गलत कामना के लिए वामन अवतार लेकर बलि के यहां आया, बलि अपने यशगाथा, गुणगान के अहंकार के मदमस्त था।
आँखों पर अविवेक का पर्दा आ गया था। विष्णु के वामन अवतार, विष्णु के शरीर का छोटे रुप को जाना नहीं और साढ़े तीन कदम जमीन देने के लिए वचन दे दिया। विष्णु ने रुप को बढ़ाया, बड़े रुप को देख पहले कदम में तो घबराया, लेकिन दुसरे ही पल आनन्द में भर गया। जैसे ही आधे कदम के लिए बलि के सिर पर पैर रखा और भगवान के पैर पकड़ लिया, छोड़ा नहीं। विष्णु से वचन लेकर उसे अपने पाताल लोक में ही रह कर उसके चौकीदार बन कर रह गए। लक्ष्मी उनकों छुड़ाने के शेषनाग की कच्चे धागे की राखी बना कर, छोटी उम्र की लड़की बन बलि को रक्षासूत्र बांधा। बलि ने बहन को उपहार मांगने का कहा, तब लक्ष्मी अपने मूल रूप में आई और अपने पति विष्णु को देने को कहा। कहते है वह दिन आज का दिन था, जब बलि ने विष्णु को सानन्द विदा किया। उसी प्रतिकात्मक रुप से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है।
◆ विष्णु मुनि ने जैन शासन की की सुरक्षा
जैन परम्परा के अनुसार रक्षा बंधन मनाने के पिछे की नमुषि मंत्री, मुनि विष्णु कुमार की घटना का उल्लेख किया। शासन की सुरक्षा के लिए मुनि विष्णु कुमार ने अपनी लब्धि से काया का विस्तार किया, तीन कदमों से छहों खण्डों को नाप लिया, नमुषि मंत्री घबरा गया, मुनि ने उसके सिर पर पैर रखा और वह मरकर सातवीं नरक में पहुंच गया। वह दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था, उसी आधार पर जैन धर्म में उस दिन को रक्षा बंधन के रूप में मनाते हैं।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती