गांधीनगर, बैंगलोर चातुर्मास- वरुण वाणी
श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बेंगलुरू में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय उप- प्रवर्तक श्री पंकजमुनिजी म. सा. ने मंगलाचरण के साथ प्रवचन सभा का शुभारंभ किया एवं मधुर गायक परम पूज्य श्री रुपेशमुनिजी म. सा. ने गुरु पद्म अमर आरती के मधुर संगान के साथ सभा को भावविभोर कर दिया तत्पश्चात दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार प. पू. डॉ. श्री वरुण मुनि जी म.सा. ने आज अपने प्रवचन में फरमाया कि जीवन का चरम परम-लक्ष्य है- वीतराग बनना । जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा एवं समर्पण के साथ भक्ति करते हैं, वह अमर हो जाते हैं । आचार्य मानुतुंग द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र के प्रथम श्लोक के दूसरे अक्षर *प्रणत* शब्द का आज हम विवेचन करेंगे । प्रणत शब्द नत शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है – नमन करना । कोई भी व्यक्ति जाति से महान या निकृष्ट नहीं होता किंतु अपने कर्म से निकृष्ट या महान बनता है । नमन या वंदन करना विनय का प्रतीक है । वंदन से जन्म-जन्मांतर के अशुभ कर्मों के बंधन कट सकते हैं । पाप के बंधन को काटने के लिए, पुण्य के बैलेंस को बढ़ाने के लिए तथा प्रभु की कृपा पाने के लिए जीवन में विनय यानी वंदन आवश्यक है । अपने आत्म कल्याण के लिए साधना करने वाले अरिहंत बनते हैं । अष्ट कर्मों को खपाने के लिए साधना करने वाले सिद्ध बनते हैं किंतु स्वयं के साथ सारे जगत के कल्याण के लिए जो साधना करते हैं, वह तीर्थंकर बनते हैं । वंदन तीन तरह से होता है जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट वंदन । नवकार मंत्र में भी पांचो पदों के नाम केवल एक-एक बार आए हैं किंतु नमो शब्द का प्रयोग सभी के साथ हुआ है । नमो शब्द हमें झुकने का संदेश देता है और जीवन में वही व्यक्ति झुक सकता है जो अहंकार से रहित है । प्रणाम हमारी श्रद्धा-भक्ति और समर्पण से होता है, अतः वंदन तन से नहीं, मन से होना चाहिए । झुकना हमारे विनय भाव को प्रकट करता है । धर्म का मूल विनय है और मोक्ष उसका अंतिम लक्ष्य है । विनय के द्वारा ही मनुष्य अतिशीघ्र शास्त्र ज्ञान और कीर्ति का संपादन करता है और अंत में मोक्ष भी इसी के द्वारा प्राप्त होता है ।
मधुर वक्ता श्री रुपेशमुनि जी म. सा. ने एक सुंदर भजन की प्रस्तुति दी ।
प्रवचन के पश्चात सभा का कुशल संचालन संघ के अध्यक्ष श्री राजेश भाई मेहता ने किया । अंत में उपप्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी म. सा. ने मंगल पाठ दिया।