किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा परमात्मा चिंतामणि रत्न है। चिंतामणि रत्न का तात्पर्य है जिसके प्रभाव से मन में जो चिंतन, विचार व संकल्प करो, वे सफल होंगे। ये रत्न पृथ्वीलोक से लुप्त हो गए हैं। इन्हें देवलोक में देव ले गए हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अवसर्पिणी काल में मनुष्य इन्हें संभाल नहीं पाएंगे।
यदि आपका कुछ काम सफल नहीं हो रहा है तो समझना वह आपके हित में नहीं है या आपके कर्मों में कुछ कमी है। आज हम हर चीज को नकारात्मक दृष्टि से सोचते हैं। उन्होंने कहा परमात्मा जग चिंतामणि रत्न है, उनके प्रभाव से जो संकल्प करोगे वे पूरे हो जाएंगे व चिंताएं दूर हो जाएगी। शत्रुंजय, सम्मेतशिखर, गिरनार, आबू व अष्टापद हमारे पांच तीर्थ है।
गौतम स्वामी को केवल्य ज्ञान नहीं मिल पाया। उन्होंने महावीर भगवान को इसके बारे में पूछा तो महावीर भगवान ने बताया मेरे प्रति राग को छोड़ देने से तुम्हें केवल्य ज्ञान प्राप्त हो जाएगा लेकिन गौतम स्वामी ने निश्चय किया कि भगवान की सेवा और भक्ति मिले तो केवल्य ज्ञान नहीं चाहिए।
एक बात याद रखना जो परमात्मा की सेवा, भक्ति करते हैं वह कभी व्यर्थ नहीं जाती। शास्त्रों में लिखा है जो अष्टापद तीर्थ की यात्रा करते हैं उनको मोक्ष मिलता ही है। परमात्मा जगन्नाथ है जो आश्रितों की हर इच्छा पूर्ण करते हैं व उनकी रक्षा करते हैं। इसके लिए उनके प्रति सद्भावना होनी चाहिए, उनके प्रति प्रीति पैदा होनी चाहिए। परमात्मा के गुण व महिमा जानेंगे तभी प्रीति पैदा होगी।