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नए संकल्प, नए स्वप्न और नए सृजन का साक्षी पर्व यानी नया वर्ष : देवेंद्रसागरसूरि

नए संकल्प, नए स्वप्न और नए सृजन का साक्षी पर्व यानी नया वर्ष : देवेंद्रसागरसूरि

श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में नव वर्ष के शुभ दिन मांगलिक स्वरूप आशीर्वचन देते हुए पूज्य आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कहा कि नया साल, समय के पर्यटन स्थल का वह नन्हा मार्गदर्शक है जिसकी अंगुली थामकर हम इस पर्यटन स्थल की बारह माह सैर करते हैं। बारहवें माह तक यह बूढ़ा हो चुका होता है तब यह हमारी अंगुली एक नन्हे मार्गदर्शक को थमाकर हमसे विदा हो जाता है।

हमारी नियति इन्हीं नन्हीं अंगुलियों के भरोसे अपनी यात्रा करने की है और इतिहास गवाह है कि शिशु कभी नहीं छलते। इसलिए सच्चा भरोसा शिशु का ही होता है। आज जब हम इस शिशु की अंगुली थामकर अपनी यात्रा आगे बढ़ा रहे हैं तो यह विश्वास करना चाहिए कि हमें यह शिशु हर्ष और उल्लास, विकास और प्रगति तथा समृद्धि और सामथ्र्य के उन स्थलों की सैर कराएगा जिनसे साक्षात करने के लिए स्वप्न हम सदैव संजोते हैं।

हर नया वर्ष अपने गर्भ में ऐसी आशाओं को समेटे रखता है जो सुनहरे भविष्य के स्मारक की आधारशिलाएं होती हैं, लेकिन ज्यों-ज्यों इस वर्ष के पांव आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे हमारे आचरण से ये आधारशिलाएं चूर-चूर होने लगती हैं। जिसका यह परिणाम होता है कि हमारे भविष्य का यह उजला स्मारक केवल हमारी कल्पना में रह जाता है, आकार में ढल नहीं पाता। यदि कर्मण्यता हो, रचनात्मक दृष्टि हो और पौरुष से भरपूर जिजीविषा हो तो हर नए साल की आशाओं को उपलब्धि के दमकते, भव्य शिल्प में ढाला जा सकता है। नव वर्ष का आगमन मनुष्य के जागरण की बेला है।

सूरज की उजास में वह नए पथ पर अग्रसर होता है। यह आगमन उसके हाथों द्वारा नए लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ली जाने वाली शपथ है और उसके कानों द्वारा सुनी जाने वाली वह भैरवी है जिसके स्वर आशा के माधुर्य को नव वर्ष के कंठ से गाते हैं। नया वर्ष जीवन शक्ति का साक्षी है। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया। यह कहना इसलिए है, क्योंकि वे लोग जीवन को खंड में देखते हैं, जबकि वह तो अखंडित होता है। उसे पूर्णता में देखना चाहिए लंबाई में नहीं। नया वर्ष जीवन को पूर्णता में देखने और जी लेने का अवसर है।

वह दीये की उस लौ की तरह है जिसके आकार की कोई अहमियत नहीं होती, अहमियत उस लौ से फैलने वाली रोशनी की होती है। संसार जगमगाते आंगन देखता है, लौ नहीं देखता। नया वर्ष हमें इतिहास की देहरी पर एक ज्योतिर्मय दीप बनाकर रख देता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी लौ को कितना ऊपर उठा पाते हैं। नए वर्ष की यही चुनौती है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए हम कैसे अपने संकल्प की लौ को और ऊपर उठाएं और ज्योतिर्मय बनाएं। नया वर्ष, नए संकल्प, नए स्वप्न और नए सृजन का ही तो साक्षी पर्व है। आइए उल्लास की अंजुरी में उल्लास के भाव पुष्पों से इसका अभिनंदन करें।

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