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धर्म जीवन में सफलता का आधार, जैसा हमारा स्वभाव वैसा होगा प्रभाव- दर्शनप्रभाजी म.सा.

सफलता पाने के लिए दृष्टि नहीं दृष्टिकोण बदलना होगा- समीक्षाप्रभाजी म.सा.

पर्युषण पर्व के दूसरे दिन साध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में सफलता के सूत्र विषय पर प्रवचन

Sagevaani.com /सूरत,। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की आराधना शुरू हो चुकी है। पूरे गोड़ादरा-लिम्बायत क्षेत्र में धर्म ध्यान व तप त्याग के मेले जैसा माहौल बन गया है। सभी श्रावक-श्राविकाएं अधिकाधिक धर्म साधना कर पर्युषण पर्व को सफल बनाए। जीवन में कोई सफलता तब तक सार्थक नहीं हो सकती जब तक धर्म के मार्ग पर चलकर प्राप्त नहीं हुई हो। ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की आठ दिवसीय आराधना के दूसरे दिन सोमवार को सफलता के सूत्र विषय पर प्रवचन में व्यक्त किए। मधुर व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि हम तनावमुक्त रहते हुए सफलता प्राप्त करनी है।

धर्म के प्रवेश के बिना जीवन सफल नहीं बन सकता है। पर्युषण में जितनी भक्ति होगी उतनी ही कर्मो की निर्जरा होगी। हमे दुर्लभ मानव जीवन के रूप में अनमोल समय मिला है जिसमें दिल खोलकर भक्ति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा जैसा स्वभाव होगा वैसा ही हमारा प्रभाव होगा। जिंदगी में आप सफल होना चाहेंगे तो हो जाएंगे लेकिन ये देखना होगा कि आपकी सफलता का पैमाना क्या है। धन, दौलत,गाड़ी,मकान आदि सफलता के प्रतीक नहीं हो सकते। साध्वीश्री ने कहा कि सफल होने के लिए हमे दिल बड़ा रखना होगा। हमारे दिल, सोच व कार्य छोटे होते जा रहे है। इंसान जैसा सोचता है वैसा ही बनता है इसलिए हमेशा सोच बड़ी होनी चाहिए। जीवन में सफल होना है तो कहने से अधिक सहना सीखना होगा। प्रतिकूलता में जितना सहन करेंगे उतना सफल हो जाएंगे।

धर्मसभा में तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जैन धर्मावलम्बियों की पहचान है कि वह सफलता पाने के लिए कड़ा संघर्ष करते है ओर जीवन में कितनी भी मुश्किले आए पर दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाते है। दृष्टि नहीं दृष्टिकोण बदलने, हर हालत में सहज ओर खुश रहने, आत्मा का बीमा कराने जैसे सफलता के तीन सूत्र बताते हुए कहा कि इन पर हम अमल कर ले तो जीवन सार्थक बन जाएगा। उन्होंने कहा कि आत्मा के बीमे की छह किस्ते रोज भरते रहे तो जीवन सुखपूर्वक बीतेगा। इनमें सुबह उठते ही सेवा कार्य करना, प्रभु का सुमिरन करना, सत्संग सुनना, स्वाध्याय करना, संतोष रखना व प्रभु के लिए समपर्ण भाव रखना शामिल है। उन्होंने कहा कि हर मानव जीवन में सफल होना चाहता है लेकिन इसके लिए उसे दृष्टि नहीं दृष्टिकोण बदलना होगा। दुनिया की सोच की परवाह नहीं करे अपनी आत्मा की नजर में अच्छे रहे। हम स्वयं से संतुष्ट है तो सफल है।

आत्मा शुद्ध व नजरिया सही है तो श्मसान में भी साधना हो सकती है ओर ये सही नहीं है तो धर्मस्थान में पहुंच कर भी पाप करते रहेंगे। पर्युषण के दूसरे दिन भी शुरू में पूज्य आगममर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्री म.सा. ने अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचन किया। उन्होंने तीसरे वर्ग के 13 अध्ययन का वाचन किया।

सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. ने भजन ‘‘सब पापो को धोने का ये वक्त निराला आया’’ की प्रस्तुति दी। दोपहर में कल्पसूत्र वांचन पूज्य हिरलप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से हुआ। पर्युषण में आठ दिवसीय अखण्ड नवकार महामंत्र जाप भी जारी है।

 *पर्युषण में जप,तप व भक्ति का माहौल*

पर्युषण में जप,तप व भक्ति का माहौल बन गया है। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन, दया व्रत आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। साध्वी मण्डल ने सभी तपस्वियों के प्रति मंगलभावना व्यक्त की। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेश गन्ना ने किया। पर्युषण में प्रतिदिन सुबह 8.30 बजे से अंतगड़ सूत्र का वांचन, सुबह 9.30 बजे से प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक कल्पसूत्र का वांचन होंगा। प्रतिदिन दोपहर 3 बजे से विभिन्न प्रतियोगिताएं होगी। सूर्यास्त से प्रतिक्रमण होगा। पर्युषण के तीसरे दिन मंगलवार को व्यस्त जीवन में धर्म कैसे करे विषय पर प्रवचन एवं दोपहर में दम्सराज प्रतियोगिता का आयोजन होगा।

 श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, लिम्बायत, गोड़ादरा, सूरत

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