जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने जीवन मे गुण दृष्टि को जागृत करने का सन्देश देते हुए कहा कि महान आचार्य मानतुंग जी महाराज ने प्रभु के श्री चरणों मे वन्दना करते हुए कहा आप गुण के सागर हो संसार मे सागरो मे स्वयंभूरमन सागर सर्वोतम माना जाता है। उससे बढ़कर अन्य सागर उसकी बराबरी नहीं करते ऐसे विशाल सागर मे भी जब अंधड़ आंधी धूल पडती है। पानी हिलोरे खा रहा हो बड़े बड़े समुद्र के जीव भी अस्त व्यस्त हो जाते है उस समय उस sagar को कोई अपनी भुजा के बल पर पार करना चाहे तो असम्भव प्रतीत होता होता है!
हे प्रभो मैं भी आपके विशाल गुणी रूप सागर को अपनी जिव्हा से गुणगान करने को व्याकुल हो रहा हूँ पर आपके अनंत गुणों का पार पाना अर्थात गुणों का वर्णन करना असम्भव हाँ! आप चन्द्र वत सौम्यता को धारण किए हुए हो! यह संसार मोह सागर से भरा पड़ा है कक्षाय रूपी लहरे उठ रही है! इस मोह रूपी संसार को पार करना असम्भव सा लगता है! मेरु पर्वत को समाप्त कर कोई समतल भूमि बनाना चाहे तो नामुमकिन है इस तरह जिसमें गुण ग्राहकता की दृष्टि पैदा हुई हो वह सर्वत्र गुण ही देखता है!
इसके विपरीत दुर्गनो का दृष्टा सर्वत्र दुर्गनो को ही निहारता है! गुरुजनो ने एक ही सन्देश दिया है कि हम दोष दृष्टि को समाप्त करने का अभ्यास करें तभी हमारा घरपरिवार संघ समाज महकता है प्रत्येक व्यक्ति मे कुछ न कुछ गुण अवश्य बिद्यमान रहते है अच्छी बुरी घटनाओ से हम प्रेरणा ले सकते है! गुणों के कारण हमारा घर स्वर्ग बनता है तो दुर्गनो से नरक बन जाता है! सभा मे साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भक्तामर के माध्यम से भक्ति का दिव्य भव्य स्वरूप समझाया गया भक्ति मार्ग ज्ञान मार्ग से आसान सरल है। इसके माध्यम से प्रभु भक्ति को जगाया जा सकता है एवं सरलता से मोक्ष मार्ग को अपनाया जा सकता है। महामंत्री उमेश जैन ने लाभार्थी परिवार का अभिनन्दन किया।