चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से कहा कि जीवन अनमोल है जिसे हर व्यक्ति जानता है। लेकिन उसकी गरिमा को बरकरार रखने के लिए मनुष्य अच्छा कर्म नहीं कर पा रहा है।
लोगो को पता है की कर्म का फल यहीं मिलना है। लेकिन उसके बाद भी बुरा कर्म कर अपने हसीन जीवन को नर्को में दाल रहे हैं। साध्वी सुविधि ने कहा जैसे इंसान जीना चाहता है वैसे ही हर जीव जीना चाहते है।
इंसान तो अपनी इच्छा और भावना व्यक्त कर सकता है पर जीव व्यक्त नहीं कर सकते है। उनके दर्द को मनुष्य को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि आहार संज्ञा के जरिये मनुष्य अपने भूख के बारे में बताता है। खाने की वस्तु सामने आने पर मनुष्य को भूख लगती है।
जब भूख लगती है तो मनुष्य उसे व्यक्त कर लेता है, लेकिन जीव इसको व्यक्त नहीं कर पाते है। आहार बिना न मनुष्य जी सकता है और न ही जीव जीवित रह सकते है। इसलिए मनुष्य को जीव के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि संग्रह संज्ञा हर जीव में पाई जाती है। लेकिन देवताओ और जीव की तुलना में यह संज्ञा मनुष्य में ज्यादा पाई जाती है।
मनुष्य हर वक्त सिर्फ संग्रह कर रखने का सोचता है। जीव सिर्फ खाने के लिए इधर उधर भटकते है। लेकिन मनुष्य संग्रह करने की वजह से दिन भर भटकते रहते है। सबको पता है कि संग्रह कितना भी करलो पर अंत मे खाली हाथ ही जाना है।
इस तथ्य को जानने के बाद भी मनुष्य संग्रह करने से नहीं बच रहा है। उन्होंने कहा कि मनुष्य चाहे तो एक कपड़े से शरीर ढक सकता है, लेकिन अपनी इच्छा की पूर्ती के लिए रोज अलग अलग कपड़े पहनता है। सिर्फ दिखावे के लिए मनुष्य समश्या को आमंत्रित करता है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को लोक संज्ञा में फस कर दिखावे के काम करने के बजाय खुद के जीवन को उज्जवल करने पर विचार करना चाहिए।
देखा देखी अगर कार्य करोगे तो जीवन के तकलीफ कभी दूर नहीं होंगे। लोगो को खुस करने की कोशिश में मनुष्य स्वयं दुख पा रहा है। दुनिया को छोड़ो अपने जीवन का सोचो।
जब खुद खुस रहोगे तो बाकी सब खुश रहेंगे। इस मौके पर संघ अध्यक्ष आनंदमल छलानी समेत अन्य लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन महावीर सिसोदिया ने किया।