कोडम्बाक्कम वडपलनी जैन भवन प्रांगण में पर्युषण महापर्व के चौथे दिन ता:27/08/2022 शनिवार को प.पू.सुधाकवरजी मसा के मुखारविंद से:-भगवान अरिष्टनेमि की आज्ञा लेकर नवदीक्षित मुनि गजसुकुमाल महाकाल श्मशान में ध्यानस्थ मुद्रा मे खडे थे! उसी समय सोमिल ब्राह्मण के पूर्व जन्म के वैर के कारण और इस जनम में उसकी बेटी को अन्त:पुर पंहुचाने के बाद भी उसकी जिंदगी बर्बाद कर देने की वजह से कुपित हो गया! गजसुकुमाल मुनि के सिर पर पाल बांधकर अंगारे डाल देता है! भगवन अत्यंत वेदना को सहन करते हुए कर्मों क्षय करते हुए सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करतें हैं!
इस हादसे से अनभिज्ञ कृष्ण वासुदेव दूसरे दिन वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर, हाथी पर सवार होकर राजमार्ग द्वारा पधारते हैं और भगवान अरिष्टनेमि को वंदन नमस्कार करते हैं! नवदीक्षित मुनि गजसुकुमाल को वंदन करने के लिए निगाहें इधर उधर दौडायी! जब वे नजर नही आये तो भ.अरिष्टनेमि से पूछा! उन्होंने बता दिया कि गजसुकुमाल सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर लिया है! और उपरोक्त लिखा वृतांत भी सुना दिया! कृष्ण वासुदेव उस व्यक्ति का नाम जानना चाहते थे! भ.अरिष्टनेमि ने बदले की भावना को बढावा ना देने प्रवृत्ति की वजह से नाम बताने से इन्कार कर दिया! लेकिन इतना बता दिया कि जो तुम्हारे सामने ही काल धर्म को प्राप्त करेगा उसीने, गजसुकुमाल की यह दशा करी है! यह भी बताया कि उसी के कारण गजसुकुमाल केवल ज्ञानी सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त हुये!
कृष्ण वासुदेव का मन क्षुब्ध हो गया इसलिए वापस राजमहल आने के लिए उन्होंने राजमार्ग के बदले गलियों से आना उचित समझा! उधर सोमिल ब्राह्मण ने कृष्ण वासुदेव को राजमार्ग से जाते देख लिया था! वह डर गया कि भ.अरिष्टनेमि सर्वज्ञ है और कृष्ण भगवान को सब कुछ बता देंगे! उसको मालूम था कृष्ण वासुदेव राजमार्ग से ही लौटेंगे! इसलिए वह अपने प्राण बचाने के लिए गलियों से निकलकर भाग जाना चाहता था अचानक राजा कृष्ण का और सोमिल का एक गली में आमना सामना हो जाता है! राजा कृष्ण को देखते ही सोमिल डर जाता है और थरथर कांपते उसके प्राण पंखेरू उड जाते है! गुरुवर्या ने यह भी फरमाया कि पर्यूषण महापर्व हमारे कर्मों का क्षय करने के लिए आते हैं और स्वर्ग में देवता भी इन 8 दिनों के लिए तरसते हैं!
प.पू.सुयशा श्री मसा ने फ़रमाया कि प्रयुषण पर्व का चौथा दिन “महावीर कल्याणक” नाम से मनाया जाता है! महावीर जयंती के दिन उनका जन्म हुआ था! वे महाराजा सिद्धार्थ एवं त्रिशला के पुत्र थे! उनका व्यक्तित्व एवं आचरण महान था! एक बीज को वट वृक्ष में तब्दील होने में बहुत समय लगता है और बहुत कठिनाइयां आती हैं! वैसे ही तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जिंदगी में भी बहुत से उपसर्ग आए जो बाकी सभी 23 तीर्थंकरों के सभी उपसर्गों को मिलाकर, उनसे भी अधिक थे! श्रमणावस्था में साढ़े बारह वर्ष की कठिन साधना के बाद उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ! साधना के दौरान उन्होंने कोई व्याख्यान नही दिया था!
30 वर्ष की आयु में उन्होंने दीक्षा अंगीकार की थी! उनका जीवन सभी है लिए मार्गदर्शक बन गया! परिवार में माता-पिता का, बड़े भाई का, बच्चों का पत्नी का आदर करना उनकी जीवनी से सीखना चाहिए! तीर्थंकरों को जन्म से ही तीन ज्ञान और वैराग्य प्राप्त होते हैं! केवल ज्ञान के बाद राग, द्वेष, वैर जैसे सारे कर्मों की निर्जरा करते हुए 72 वर्ष की आयु में सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त किया! हमें भगवान महावीर स्वामी की पूरी जीवनी सुननी, समझनी और स्वीकार करनी चाहिए! उनकी जीवनी हमें सुधरने का बहुत बड़ा मौका देती है! आज की धर्म सभा में जयंती श्राविका मंडल द्वारा भगवान महावीर के जन्म पर एक नाटिका प्रस्तुत की गई।