आज का ये दिवस चार्तुमास का अन्तिम दिवस है साथ ही विदाई दिवस। ये दो प्रसंग आपके सामने है। साथ ही तीसरा प्रसंग लोकाशाह जयंती का पर्व है। पर्व जीव को आत्मा से जोड़ता है ऊपर उठाता है। चार्तुमास सर्व पापों को धोने का काल है। इस काल के अन्तर्गत जीव अपने सभी पापों की निन्दा कर घृणा कर आत्म उत्थान का प्रयास करता है।
जो आत्मा सदाकाल भोग विलास में रमण करती है उसे भोग विलास को विराम दे सब कुछ भूलकर ब्रह्मचर्य का भी पालन इस काल में किया जाता है। ये काल भोग विलास का नही, आत्मा की समृद्धि का काल है। इसमें जीव आत्म चिन्तन कर सभी पापों से निवृत होने का प्रयास करता है। ऐसे काल में कभी -2 जीव अकरणीय कार्य कर देता है। उस कार्य की आलोचना अंतिम दिन करते है। गलती तो सबसे होती है। ये चातुर्मास काल वैर बांधने का नही क्षमा करने व क्षमा लेन का काल है। जैन धर्म मे व्यवहार रुपी विदाई का दिन मनाया जाता है ।
हर दिन क्षमा देने व लेने का काल है विदाई किसकी होती है। विदा करने योग्य कौन है? विदाई तो बहन बेटी की होती है साधु की न तो विदाई और न जुदाई होती है साधु को तो बधाई का कलश दिया जाता है। चातुर्मास के अन्तिम दिवस किये गये धर्म कार्यों का विस्मरण किया जाता है। साधु तो छद्मस्थ है। इस काल में साधु चर्या का ख्याल रखना पड़ता है। प्रवेश के दिन से आपके श्री संघ के साथ मेरा व्यवहार रहा। साधु जीवन का निर्वाह घर-2 की भिक्षा से होता है। गोच्छरी ग्रहण करते समय वार्तालाप व भिक्षा के लिए अनेक घरों में आवागमन भी होता है।
इन सभी के बीच में यदि मैंने कोइ विधि का पालन न किया हो, सदोष आहार ग्रहण कर के घर न जा पाया, किसी के घर अधिक किसी के घर न्युन ग्रहण किया हो जिससे आपको पीड़ा हुई हो तो आप सभी से आहार पानी से संबंधी क्षमा याचना करता हूँ। प्रवचन के समय प्रेरणा के लिए कभी कुछ बोल दिया हो, प्रवचन के विपरीत, बोला हो, धर्म ध्यान के सिवा और कोइ बोल दिया हो तो मिच्छामि दुक्कड़म। दोपहर को महिला की धर्म क्लास लेते समय कुछ शैली में धर्म सबंधी कुछ कहा हो तो क्षमा मिच्छामि दुक्कड़म कहता हूँ।
रात को नवयुवकों को शंका समाधान करते समय साधू विपरीत कोई शब्द कहा हो तो क्षमायाचना करता हूं। संघ के पदाधिकारियों से कोई जीद की हो जिसकी उन्हें कोई बाधा उत्पन्न हुई हो तो क्षमा याचना करता हूँ। प्रवेश से लेकर अब तक इस दौरान सभी के सम्पर्क में रहा, कुछ विपरीत वस्तु मंगवाई, हो, भिजवाई हो, राग द्वेष उत्पन्न हुआ हो तो क्षमायाचना करता हूं । संघ ने चार्तुमासु की जो जिम्मेदारी ली, वो आपके सामने है। मैं तो निमित्त मात्र हूँ आप करने वाले है। चातुमास काल धर्म ध्यान से युक्त हो ऐसा सबका भाव होता है। अशोक जी कोठारी, सुरेशजी संचेती ने विनती रखी।
सबकी भावनाएं मेरे प्रति अच्छी थी। मेरे आगमन से नार्थ टाउन में धर्म ध्यान हो सका। ऐसा सबका विश्वास रहा। वो विश्वास पर खरा नहीं उतरा हूँ तो क्षमायाचना करता हूं। संघ की विनती पर प्रत्येक जाप के घर में मैं गया उस बेला मे कुछ अव्यवहारिकता हुई हो तो सभी से आज क्षमा याचना करता हूं। यहां की आलोचना आज प्रतिक्रमण का दिन मुझे सभी पापों से निवृत्ति दिलायेगी । जितना हो सके मैंने अपनी आत्मा को सांसारिक प्रवृति से बचाया, फिर भी आपकी नजर में मुझसे कुछ गलत हुआ तो मुझे अवश्य बताइयेगा।