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जीवन में महान वहीं बनता जो सीख जाता गम खाना-दर्शनप्रभाजी म.सा.

जीवन में महान वहीं बनता जो सीख जाता गम खाना-दर्शनप्रभाजी म.सा.

मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जयंति एवं एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान रूपचंदजी म.सा. की 97वीं जयंति के उपलक्ष्य में छह दिवसीय गुरू द्वय पावन जन्मोत्सव कार्यक्रम के चौथे दिन शुक्रवार को मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में दो-दो सामायिक के साथ श्री उवसग्गं स्रोत का जाप किया गया। जाप के माध्यम से तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ की आराधना की गई। जाप के माध्यम से सर्वमंगल एवं कष्ट निवारण की कामना की गई। जाप मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने सम्पन्न कराया।

जाप में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं शामिल हुए। जाप के बाद प्रवचन में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि गुरू द्धय जयंति महोत्सव में तप साधना व धर्म आराधना का जिस तरह ठाठ लगा हुआ है उसके लिए गाड़ोदरा श्रीसंघ भी साधुवाद का पात्र है। उन्होंने श्रावक के 12 व्रत में से आठवें व्रत अनर्थदण्ड व्रत के प्रत्याख्यान भी कराए।

रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., ने कहा कि गम खाना हॉलाकि बहुत मुश्किल होता है पर महान वहीं बनता जो गम खाना सीख जाता है। जीवन में हम तारने वाला गुरू ही होता है इसलिए गुरू की शरण कभी नहीं छोड़नी चाहिए। गुरू के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। गुरू ही सीमंधर स्वामी तक पहुंचाने वाला होता है। उन्होंने कहा कि हम विहार करके किसी स्थानक पहुंचते है ओर वह साफ सुथरा मिलता है तो हमारी आधी थकान वहीं उतर जाती है। भगवान के दरबार में आने के लिए किसी के बुलावे का इन्तजार नहीं करना चाहिए। हम सुबह उठते ही सबसे पहले गुरू को वंदना अवश्य करनी चाहिए।

तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जिस जीव की भावना शुद्ध है वह जागते हुए भी अच्छा है ओर सोते हुए भी अच्छा है। इसके विपरीत जो जीव हिंसा करता है वह सोते हुए ही अच्छा रहता है। जो जीव धर्म करता है ओर शांति में विश्वास करता है उसे जागृत रहना चाहिए। उन्होंने सामायिक का महत्व बताते हुए कहा कि एक शुद्ध सामायिक करने पर नारकी का आयुष्य क्षय कर शुभ आयुष उपार्जन होता है।

विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. ने गुरू का प्यार न छूटे भजन की प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि महापुरूषों का जीवन गुणों से भरा रहता है। जो त्याग करता है वहीं महापुरूष बनता है ओर उनका जन्मदिन किसी क्षेत्र विशेष में नहीं बल्कि पूरे देश में मनाया जाता है। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा.,सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। द्वय गुरूदेव जयंति महोत्सव के पांचवे दिन शनिवार को दो-दो सामायिक के साथ भक्तामर के 36वें श्लोक का जाप होगा। छह दिवसीय आयोजन का समापन 18 अगस्त को एकासन दिवस मनाते हुए गुरू जाप, श्रावक दीक्षा व गुणानुवाद के साथ होगा।

महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा बह रही त्याग तपस्या की गंगा

महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से लिम्बायत-गोड़ादरा क्षेत्र में धर्म ध्यान व तप साधना की गंगा निरन्तर प्रवाहित हो रही है। प्रतिदिन तपस्याओं के प्रत्याख्यान लिए जा रहे है। प्रवचन हॉल शुक्रवार को उस समय तपस्वी की अनुमोदना में हर्ष-हर्ष, जय-जय के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से सुश्राविका शिमलाजी सांखला ने 23 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने सभी तपस्वियों के प्रति मंगलभावनाएं व्यक्त की। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेशजी गन्ना ने किया।

 *श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, लिम्बायत,गोड़ादरा,सूरत*

सम्पर्क एवं आवास व्यवस्था संयोजक-

अरविन्द नानेचा 7016291955

शांतिलाल शिशोदिया 9427821813

 *प्रस्तुतिः* निलेश कांठेड़

अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा

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